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विद्यार्थी-जीवन की एक घटना भुलाए नहीं भूलती। हम दसवीं कक्षा में थे। हिंदी के अध्यापक ने शिक्षा के उद्देश्य पर एक लंबा-चौड़ा भाषण दिया। जिला विद्यालय निरीक्षक हमारे कॉलेज का निरीक्षण करनेवाले थे। गुरुजी ने घोषणा की कि कक्षा में जो छात्र शिक्षा के उद्देश्य पर सबसे अच्छा भाषण तैयार करके लाएगा, उसे पुरस्कृत किया जाएगा। सभी छात्र गुरुजी द्वारा बताए जा रहे शिक्षा के उद्देश्यों को नोट करने में व्यस्त थे। गुरुजी कह रहे थे कि शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य बच्चों को एक अच्छा शहरी, भविष्य का एक अच्छा इनसान बनाना है। उन्हें किस तरह समाज और व्यक्तिगत जीवन के बीच नैतिक आधार पर संतुलन स्थापित करना चाहिए तथा हर प्रकार के लोभ, लालच, क्रोध और घृणा की भावनाओं को त्यागकर अन्य लोगों की निस्स्वार्थ सेवा करनी चाहिए, बड़ों का सम्मान और छोटों को प्यार देना चाहिए।
गुरुजी का भाषण समाप्त हुआ तो एक छात्र ने अपना हाथ उठाया। सभी को लगा, जैसे कक्षा भर में अकेला छात्र यही है, जिसने गुरुजी द्वारा दिए गए उपदेश को हाथोहाथ कंठस्थ कर लिया है। गुरुजी ने उसकी ओर देखकर संकेत किया—
‘हाँ बेटे! तुम समझे, शिक्षा का उद्देश्य?’ छात्र की ओर से उत्तर आया—‘यस सर!’ ‘बोलो,’—गुरुजी ने आदेश दिया। छात्र बोला, ‘तनख्वाह।’ शिक्षा की आंतरिक व्यवस्था पर चोट करते हुए ये व्यंग्य तीखे भी हैं और मीठे भी।
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।