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आचार्य शिवपूजन सहाय हिंदी के ऐसे विरल साहित्यकार-संपादक थे, जिन्होंने हिंदी भाषा की शुद्धता और विकास के लिए अतुलनीय कार्य किया । ' मारवाड़ी सुधार ' जातीय पत्रिका से प्रारंभ हुई उनकी संपादकीय यात्रा में अनेक पड़ाव रहे । उन्होंने ' मतवाला ', ' बालक ', ' गंगा ' जैसी ऐतिहासिक महत्त्व की अनेक पत्र- पत्रिकाओं का संपादन किया । हिंदी के प्रखर पत्रकार और संपादक के रूप में ' मतवाला ' उनकी राष्ट्रीय ख्याति का आधार रहा । महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों को उन्होंने अपने जीवन तथा पत्रकारीय कर्म में सत्य- निष्ठा से अपनाया । उनका जीवन भारी आर्थिक कठिनाइयों में बीता । पत्र-मालिकों एवं प्रकाशकों ने उनकी लेखकीय एवं संपादकीय प्रतिभा का भारी शोषण किया । डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण एवं आचार्य नरेंद्रदेव जैसे बड़े राजनेताओं से निजी आत्मीय संबंध होने के बावजूद इनका उपयोग अपने कष्टों के निवारण हेतु कभी नहीं किया । बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् में निदेशक के पद पर रहते हुए सहायजी ने हिंदी के चहुँमुखी विकास की अपनी मूल आकांक्षा की पूर्ति में विभिन्न विषयों के जिन स्तरीय मानक ग्रंथों के प्रकाशन का कार्य किया, वह चमत्कृत करनेवाला है । इन सभी ग्रंथों के प्रत्येक पृष्ठ पर आचार्य सहाय के सुयोग्य संपादकत्व की इबारत दर्ज है।
प्रस्तुत पुस्तक में श्री कर्मेंदु शिशिर ने सहायजी के संपूर्ण व्यक्तित्व एवं कृतित्व का तथ्यपरक विवरण दिया है ।
वाराणसी में 26 अगस्त, 1953 को जनमे कर्मेंदु शिशिर हिंदी के प्राध्यापक हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, लेख और समीक्षा आदि विविध विधाओं में कलम चलाई और अलग पहचान बनाई । हिंदी चर्चित पत्रिकाओं ' सार सुधा निधि ' ( दो खंड) ' मतवाला ' ( तीन खंड) और ' पहल ' ( तीन खंड) का विशेष अध्ययन उनके संपादन - कृतित्व का उल्लेखनीय पक्ष है ।