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ब्रज से आरंभ हुई लीला क्षितिज तक फैलती चली गई। प्रयोजन प्रेम की गहराई को जतलाना था या ईश्वर - शक्ति के ऐक्य को दिखाना, लीलाधर ही जानें! पर इस प्रीति का निर्वाह भली प्रकार हुआ। ऐसी प्रीति अन्यत्र कहीं देखी न सुनी। संयोगकाल कितना छोटा और वियोग का मानो एक कल्प । फिर भी प्रेम की तीव्रता रंचमात्र भी कम नहीं। अलग-अलग रहते हुए श्रीराधा-कृष्ण दोनों ने आजीवन प्रेम की रीति-नीति का पालन किया।
बूँद-बूँद अनुभूतियों से भरी श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम की गागर भावनाओं का सागर बन गई । क्या नहीं है इस सागर में - शृंगार, उत्साह, शोक, आश्चर्य, क्रोध, हास्य, वात्सल्य और फिर एक अनिर्वचनीय शांति । प्रेम का चरम लक्ष्य शांति ही है। सच्चा प्रेम यदि साधना की सर्वोच्च अवस्था तक नहीं पहुँचे, तो अपूर्ण है। प्रेम पूर्ण तभी, जब साधन और साध्य दोनों धर्मयुत् हों । रीति निर्मल, लक्ष्य पवित्र तो उपलब्धि का अतिपावन होना अवश्यंभावी है ।
डाॅ. कामना सिंह
जन्म : आगरा (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र, हिंदी), पी-एच.डी. (दर्शनशास्त्र, हिंदी), बी.ए., एम.ए. (द्वय) की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान सहित अनेक स्वर्ण पदक।
बच्चों एवं बड़ों के लिए समान दक्षता से लेखन।
प्रकाशित बाल-साहित्य : चर्चित लोकप्रिय पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : उ.प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ से नामित सूर पुरस्कार तथा निरंकार देव सेवक बाल साहित्य इतिहास लेखन सम्मान। ‘हवा को बहने दो’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
विशेष : पत्र-पत्रिकाओं में व्यापक प्रकाशन। ‘बोल मेरी मछली’ पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोध कार्य। पाठ्यक्रम में रचनाओं का संकलन।
अनेक कला प्रदर्शनियों में सहभागिता।