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आधुनिक भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक नवजागरण में श्रीनारायण गुरु की भूमिका ऐतिहासिक महत्त्व की रही है। साथ ही भारत एवं सारे विश्व में अल्पज्ञात तथ्य यह है कि स्वामी विवेकानंद द्वारा सन् 1893 के शिकागो भाषण में भारत के आध्यात्मिक संदेश और अद्वैत सिद्धांत के आधार पर विश्व बंधुत्व की भावना के उद्घोष के पाँच वर्ष पहले ही सन् 1888 में नारायण गुरु ने जाति के आधार पर सभी मानवीय अधिकारों से वंचित पिछड़ी और दलित जातियों के लिए शिव मंदिर की स्थापना करते हुए भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान को भ्रातृ भावना से ‘जाति-भेद’ और ‘धर्म-विद्वेष’ के बिना सभी को प्रदान करने का उपक्रम किया। ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर’ मानवता का यह आदर्श देते हुए जाति और धर्म से परे आध्यात्मिक सत्य को उन्होंने उजागर किया। प्रस्तुत ग्रंथ में यह भी दिखाया है कि गुरु ने अमानवीकृत या अपमानवीकृत (डी-ह्यूमनाइज्ड) जनसमूह का पुनर्मानवीकरण कर उनकी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग कैसे प्रशस्त किया। लेखक ने श्रीनारायण गुरु के जीवन, कार्यकलाप, दार्शनिक चिंतन और रचनाओं का परिचय देते हुए उनके द्वारा प्रस्तावित अष्टांग योजना का निरूपण किया है और उन्हें आधुनिक भारत में आध्यात्मिक क्रांति का अग्रदूत स्थापित किया है। आज के भूमंडलीकरण के दौर में श्रीनारायण गुरु का आध्यात्मिक क्रांति का संदेश अत्यंत प्रासंगिक लगता है।
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अनुक्रम
भूमिका —Pgs. 7
1. श्रीनारायण गुरु : बचपन और शिक्षा —Pgs. 11
2. आध्यात्मिक क्रांति के अग्रदूत —Pgs. 18
3. गुरु का समय और अमानवीकरण के उपादान —Pgs. 34
4. श्रीनारायण गुरु की पुनर्मानवीकरण-प्रक्रिया —Pgs. 49
5. मंदिरों और आश्रमों की शृंखलाएँ —Pgs. 58
6. संगठन का प्रसार और उसका प्रभाव —Pgs. 73
7. धर्म-परिवर्तन विवाद, सर्वधर्म सम्मेलन एवं श्रीलंका यात्राएँ —Pgs. 101
8. श्रीनारायण धर्म संघ और शिवगिरी तीर्थाटन की अष्टांग योजना —Pgs. 116
9. श्रीनारायण गुरु का दार्शनिक चिंतन —Pgs. 126
10. श्रीनारायण गुरु की कविताएँ और भारतीय दलित साहित्य —Pgs. 138
11. श्रीनारायण गुरु, भारतीय नवजागरण एवं आध्यात्मिक क्रांति —Pgs. 154
श्रीनारायण गुरु की प्रमुख कविताएँ
(क) जाति-निरूपक कविताएँ
1. जाति-निर्णय —Pgs. 163
2. जाति का लक्षण —Pgs. 164
(ख) दार्शनिक कविताएँ
1. आत्मोपदेश शतक —Pgs. 166
2. जननी नवरत्न मंजरी —Pgs. 183
3. ब्रह्मविद्या पंचक —Pgs. 185
4. दर्शन-माला —Pgs. 187
4.1 अध्यारोप-दर्शन —Pgs. 187
4.2 अपवाद-दर्शन —Pgs. 189
4.3 असत्य-दर्शन —Pgs. 191
4.4 माया-दर्शन —Pgs. 193
4.5 भान-दर्शन —Pgs. 194
4.6 कर्म-दर्शन —Pgs. 196
4.7 ज्ञान-दर्शन —Pgs. 198
4.8 भक्ति-दर्शन —Pgs. 199
4.9 योग-दर्शन —Pgs. 201
4.10 निर्वाण-दर्शन —Pgs. 203
5. अद्वैत दीपिका —Pgs. 205
6. मुनिचर्या पंचक —Pgs. 208
7. निरवृति पंचक —Pgs. 209
8. अहिंसा —Pgs. 210
9. धर्म —Pgs. 211
10. सदाचार —Pgs. 211
11. आश्रम —Pgs. 212
12. जीव करुणा पंचक —Pgs. 213
13. अनुकंपा दशक —Pgs. 214
14. दैव दशक —Pgs. 216
15. ज्ञान —Pgs. 217
16. ईशावास्योपनिषद् भाषा —Pgs. 220
(ग) शिव-भक्तिपरक कविताएँ
1. कुंडलिनी गीत —Pgs. 225
2. स्वानुभव गीति —Pgs. 227
3. शिव-स्तवन-प्रपंच की सृष्टि —Pgs. 237
4. चित्-जड़ चिंतन —Pgs. 238
5. मननातीत —Pgs. 240
6. शिव शतक —Pgs. 242
7. अर्द्धनारीश्वर-स्तवन —Pgs. 258
सहायक ग्रंथ-सूची
(क) मलयालम् —Pgs. 261
(ख) अंग्रेजी —Pgs. 262
(ग) हिंदी —Pgs. 263
प्रो. जी. गोपीनाथन का जन्म 20 अप्रैल, 1943 को केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के बालरामपुरम गाँव में हुआ। हिंदी में एम.ए., पी-एच.डी. और डी.लिट्. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। रूसी भाषा में डिप्लोमा प्राप्त कर कालिकट विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक, रीडर, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में कुलपति, फिनलैंड के हेलसिंकी विश्वविद्यालय और वारसॉ यूनिवर्सिटी पोलैंड में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। हिंदी और मलयालम में 12 पुस्तकें प्रकाशित। कालिकट यूनिवर्सिटी रिसर्च जर्नल (भाग 1, 2) का संपादन, बहुवचन, पुस्तक वार्त्ता, हिंदी विमर्श एवं तुलनात्मक साहित्य विश्वकोश का संपादन। ‘राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ (भारत सरकार), ‘साहित्य वाचस्पति’, ‘कुसुम अहिंदी भाषी हिंदी सम्मान’, सौहार्द सम्मान’, ‘नातालि पुरस्कार’, ‘साहित्य साधना सम्मान’, ‘भाषा सेतु सम्मान’ आदि अनेक सम्मानों से अलंकृत। विश्व के प्रायः सभी प्रमुख देशों की अकादमिक यात्राएँ।
संपर्क : सौपर्णिका, काक्कंचेरी, कालिकट यूनिवर्सिटी पोस्ट, केरल-673635
दूरभाष : 09747028623
इ-मेल : gopinathan.govindapanicker@gmail.com