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श्रीराम लोकमानस में रचे-बसे हैं। इससे बड़ा सत्य यह है कि श्रीराम से पुराना कोई नाम नहीं है। श्रीराम के चरित्र से हजारों वर्षों से मानव ने स्वयं को पुनीत किया है। भगवान् श्रीराम के हृदय में तो मैत्रीभाव, सौहार्द भाव है। वे विरोधी के कल्याण की ही सोचते हैं।
उनके हृदय में तो बस सबके लिए कल्याण-भाव है। भगवान् श्रीराम के मन में शत्रुभाव का नितांत अभाव है। उन्होंने अपना अनर्थ करनेवाले रावण के प्रति भी हमेशा उदारता दिखाई, समझाया और धर्म की रीति का पालन करते हुए धर्मयुद्ध में राक्षसों का संहार किया। ऐसे श्रीराम की राजकुमार से भगवान् के परमपद तक की जीवन-यात्रा साधना के साथ होना इस पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य रहा है। धैर्यशीलता, सत्यशीलता और कृपाशीलता की संयुक्त झलक श्रीराम के चरित्र में स्थान-स्थान पर मिलती है। उनके अवतरण से समाज में समभाव, और सत्यनिष्ठा, अद्वितीय कर्त्तव्य से पीडि़त, शोषित और वंचितों के सम्मान की श्रीवृद्धि हुई और समाज में जीवन-मूल्यों की स्थापना हुई। पुस्तक में श्रीराम के राजकुमार, ब्रह्मचारी, शिष्य, परिव्राजक, पुत्र, पति, वनवासी, जिज्ञासु, ऋषि-सत्ता के प्रति श्रद्धावान्, परम योद्धा, भ्राता, मित्र, शत्रु, राजा, त्यागी, मर्यादा पुरुषोत्तम आदि सभी रूपों में अनुकरणीय आदर्श के रूप में चरित्र को उकेरने का प्रयास किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक श्रीराम का अयोध्या के राजकुमार से भगवद्पद तक प्रेरक एवं पुनीत प्रस्तुतीकरण है।
जन्म : 29 नवंबर, 1951 को ग्राम-बिलरही जिला-महोबा (उ.प्र.) बुंदेलखंड।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा गाँव में; प्रयाग विद्यालय से एम.एस-सी.। 1974 में आई.पी.एस. में योगदान। सेवाकाल में एल-एल.बी., पी-एच.डी. की उपाधियाँ अर्जित।
प्रकाशन : कवि, लेखक एवं नाटककार। हिंदी, अंग्रेजी में कुल तेरह पुस्तकें प्रकाशित। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ में आलेख प्रकाशित। रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कोलकाता के प्रतिष्ठत फाउंडेशन डे ओरेशन 2012 का वक्तृता का सौभाग्य प्राप्त।
बिहार के पुलिस महानिदेशक पद से सेवा-निवृत्त। झारखंड सरकार के सुरक्षा सलाहकार (राज्यमंत्री समतुल्य) पद पर एक वर्ष से अधिक कार्य, तदोपरांत पद से त्याग-पत्र।
संपर्क : deokinandan.gautam@gmail.com