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धर्म शब्द 'धृ' धातु से बना है, जिसका मतलब है, 'धारण करने योग्य'। धर्म स्वयं की खोज का नाम है। धर्म हमें सदाचार, कर्तव्य, सद्मार्ग पर चलना सिखाता है। 'श्रीराम मंदिर काव्य-यात्रा' आरंभ करने से पूर्व मन में केवल एक ही विचार था कि जिस धर्म में हमने जन्म लिया है, जिसके कारण हमारी पहचान है और जो धर्म अन्य सभी धर्मों का भी पूरा सम्मान करता है, उस धर्म के प्रति मैं यानी डॉ. बबीता गर्ग क्या दायित्व निभा रही हूँ ? समाज के प्रति मेरा उत्तरदायित्व क्या है? यह एक प्रश्न मन को अत्यधिक उद्वेलित करता रहा। मन की शांति हेतु मेरी इस पुस्तक का शुभारंभ हुआ और 108 रचनाकारों को इसमें सम्मिलित किया। यह कृति एक छोटी सी आहुति से आरंभ होकर महायज्ञ में परिवर्तित हो, यही प्रभु रामजी से प्रार्थना है।