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महाकाव्य श्रीकृष्णचरितमानस में भगवान् श्रीकृष्ण के जीवन के सभी प्रसंगों का विस्तृत वर्णन है। भगवान् श्रीकृष्ण के बाल्यावस्था, युवावस्था, राजा श्रीकृष्ण इत्यादि व्यतित्वों के उपरांत उनके स्वधाम वापसी के प्रसंगों को एक साथ अनुभूति प्राप्त करने की प्रबल इच्छा प्रत्येक कृष्णभत में होती है। महाकाव्य में जन्म प्रसंग को पढ़कर ईश्वरी शति के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाना प्राकृतिक प्रतीत होता है। भगवान् की युवावस्था के विविध प्रसंग व्यति के मानस में भतिरस का प्रभाव स्वत: प्रारंभ कर देते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण के माध्यम से अभिव्यत कर्म के सैद्धांतिक संदेश द्वारा व्यतित्व संवर्धन में स्वाभाविक निरूपण इस महाकाव्य की विशेषता है।
प्रस्तुत महाकाव्य में कलियुग के मानव को पौराणिक ग्रंथ महाभारत के महानायक भगवान् श्रीकृष्ण के माध्यम से यथोचित दिशा में अभिप्रेरित करने की प्रबल संभावना अत्यंत स्वाभाविक है। कर्म के प्रति आकर्षण और कर्म करने के लिए प्रतिष्फुटित ऊर्जा के प्रभाव को सतत प्रभावमान रखने के उद्देश्य से रचित यह महाकाव्य श्रीकृष्णचरितमानस न केवल साधु-संतों, ज्ञानियों-मुनियों इत्यादि को ही नहीं, अपितु एक गृहस्थ को भी आकर्षित करने में सफल है।
वास्तव में भगवान् श्रीकृष्ण का जीवन भारतीय संस्कृति के मूल्यवाहक व्यतित्व का व्यावहारिक उदाहरण है। व्यति के जीवन जीने के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करती भगवान् श्रीकृष्ण के व्यतित्व का इस कृति के माध्यम से पुनर्प्रस्तुतीकरण व्यतित्व निर्माण की दिशा का विस्तार ही है। महाकाव्य श्रीकृष्णचरितमानस भति-रस का वह सरोवर है, जिसमें मन, बुद्धि, चि, अहंकार, कारण, महाकारण एवं विज्ञान रूपी स्थूल से सूक्ष्मातिसूक्ष्म दशा का मानसिक पर्यटन स्वत: प्रारंभ होकर, उसी में सराबोर हो जाता है।
पंडित नंदलाल शर्मा का जन्म उ.प्र. स्थित जौनपुर के अंतर्गत आने वाली तहसील हरिपुर के उदपुर गाँव में 11 अतूबर, 1932 में हुआ था।
गायत्री परिवार के संपर्क में आकर पंडित नंदलाल शर्मा दो उपन्यास और अनेक काव्य-संग्रहों की रचना की। इसी मध्य पंडित शर्मा, डॉ. विजय सोनकर शास्त्री (पूर्व सांसद) से प्रभावित होकर वाराणसी स्थित उनके आवास भेंट की। इस मुलाकात के बाद पं. शर्मा ने कृष्णचरित मानस की रचना का कार्य प्रारंभ किया। डॉ. शास्त्री भगवान् श्रीकृष्ण के दृष्टांत को शोधन एवं विश्लेषण के उपरांत उपलध घटनाओं को क्रमबद्ध कर पं. नंदलाल शर्मा को हस्तांतरित करते रहे और शर्माजी बिना विलंब के उसे दोहा, चौपाई, सोरठा, सवैया में परिवर्तित कर देते थे। पं. नंदलाल शर्मा के जीवन की सबसे बड़ी उपलधि श्रीकृष्णचरित मानस आज जन-सामान्य में जीवन जीने की प्रेरणा का स्रोत है।
डॉ. विजय सोनकर शास्त्री का जन्म उार प्रदेश में वाराणसी जनपद के ऐसे परिवार में हुआ, जिसमें ग्रामीण पृष्ठभूमि और भारतीय विकासशील समाज का परिवेश तो था ही, स्वतंत्रता सेनानी पिता स्वर्गीय शिवलाल के अभिन्न मित्र प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर राजा राम शास्त्री का संरक्षण भी महवपूर्ण रहा। डॉ. शास्त्री के पितामह से उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र की गहरी मित्र भावना ने इन्हें लेखन विधा की तरफ सर्वदा प्रेरित किया एवं डॉ. शास्त्री ने कई महवपूर्ण पुस्तकों की रचना की। श्रीकृष्णचरित मानस उनके साहित्यिक जीवन का एक स्वप्न था, जो पंडित नंद लाल शर्मा से मिलकर पूर्ण हुआ।
न्याय एवं सामाजिक समरसता के पक्षधर डॉ. शास्त्री को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार का अध्यक्ष भी नियुत किया गया। देश एवं विदेश की अनेकों यात्राएँ कर डॉ. शास्त्री ने हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सुनिश्चित किया। विश्व मानव के सर्वोच्च कल्याण की भारतीय संकल्पना को चरित्रार्थ करने का संकल्प लेकर व्यवस्था के सभी मोर्चों पर डॉ. शास्त्री सतत सक्रिय हैं।