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"क्या मैं देह हूँ ? नहीं हूँ। क्या मैं प्राण हूँ? पर बाहर जाती श्वास को वापस अंदर कौन ले आता है? और जब वह ऐसा करने से चूक जाता है अथवा जान-बूझकर नहीं करता है, तो वह 'मैं' भी तो नहीं रह जाता।
बहुत आनंद आया, जब श्रीरामकृष्ण द्वारा नरेंद्र को कहे गए ये महावाक्य पढ़े, ""ईश्वर है। मैं उसे देख रहा हूँ, जैसे तुम्हें देख रहा हूँ। कदाचित् उससे भी अधिक स्पष्टता के साथ उसे देख रहा हूँ। तुम भी उसे देख सकते हो। उससे बात कर सकते हो।"" मुझे ये वाक्य पूर्णतः सत्य लगे। मेरे प्रश्नों का समाधान हो गया था। यह एक बहुत अच्छी बात हुई। पर यहाँ से एक लंबी, कठिन, जटिल यात्रा प्रारंभ होती है।
इस राह पर देर-सबेर सबको आना पड़ेगा। श्रीरामकृष्ण ने भक्ति का साधन भी बता दिया। यह उनकी महती कृपा थी कि इसके बाद श्रीरामकृष्ण-विवेकानंद साहित्य को लगातार पढ़ने का अवसर मिला और जब मैं पढ़ने से ऊबने लगता तो श्रीरामकृष्ण मिशन की किसी- न-किसी शाखा से मुझे भाषण देने के लिए बुला लिया जाता। इस तरह मुझसे एक तरह से जबरन स्वाध्याय भी कराया गया।
श्रीरामकृष्ण के जीवन के अध्ययन की पूर्णाहुति के रूप में यह कृति उनकी विशेष कृपा से संपन्न हो सकी है।"
जन्म : 29 नवंबर, 1951 को ग्राम-बिलरही जिला-महोबा (उ.प्र.) बुंदेलखंड।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा गाँव में; प्रयाग विद्यालय से एम.एस-सी.। 1974 में आई.पी.एस. में योगदान। सेवाकाल में एल-एल.बी., पी-एच.डी. की उपाधियाँ अर्जित।
प्रकाशन : कवि, लेखक एवं नाटककार। हिंदी, अंग्रेजी में कुल तेरह पुस्तकें प्रकाशित। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित मासिक पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ में आलेख प्रकाशित। रामकृष्ण मिशन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चर, कोलकाता के प्रतिष्ठत फाउंडेशन डे ओरेशन 2012 का वक्तृता का सौभाग्य प्राप्त।
बिहार के पुलिस महानिदेशक पद से सेवा-निवृत्त। झारखंड सरकार के सुरक्षा सलाहकार (राज्यमंत्री समतुल्य) पद पर एक वर्ष से अधिक कार्य, तदोपरांत पद से त्याग-पत्र।
संपर्क : deokinandan.gautam@gmail.com