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चिडि़यों की उड़ान नौ साल की उम्र में पी.वी. सिंधु ने खेल-खेल में एक विजिटिंग
कार्ड डिजाइन किया था, जिस पर लिखा था—बैडमिंटन अर्जुन अवार्डी। चौबीस साल की
उम्र में उन्होंने अपनी अलमारी में सन् 2020 के ओलंपिक स्वर्ण पदक के लिए एक
स्थान खाली रखा था। ‘शटल की रानी’, इन दो चरणों के बीच उनके सफर की कहानी
है।
जब वह रेलवे कॉलोनी से प्रशिक्षण मैदान तक प्रतिदिन पचास
किलोमीटर से अधिक की यात्रा करती थीं, तो सिंधु का एक ही सपना था—भारत की
सर्वश्रेष्ठ बैडमिंटन खिलाड़ी बनना। वॉलीबॉल, जो उनके माता-पिता का खेल था, उसकी
चर्चा डिनर टेबल पर हुआ करती थी, लेकिन स्पोर्ट्स आइकन पुलेला गोपीचंद उनके
आदर्श थे। ऐसे समय में जब साइना नेहवाल एक उभरती हुई स्टार थीं, सिंधु भी उन्हीं
की अकादमी में शामिल हुई और इस फैसले ने उनकी जिंदगी बदल दी। आज वह एक ओलंपिक
रजत पदक विजेता, पद्मभूषण और फोर्ब्स द्वारा जारी दुनिया की सबसे अधिक पैसा
कमाने वाली एथलीटों की सूची में शामिल होनेवाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं।
उन्होंने भारी पराजय के झटके और जोश भरने वाली जीत के साथ विश्वप्रसिद्ध
प्रतिद्वंद्विता भी देखी। फिर भी वह एक ऐसी लड़की हैं, जिन्हें फिल्मों, शरारतों
और मैसूर पाक से प्यार है।
‘शटल की रानी’ पुस्तक बताती है कि
कैसे दिग्गज बैडमिंटन खिलाडि़यों की हताशा युवा पीढ़ी के लिए एक परिवर्तनकारी
बदलाव लेकर आई; क्यों भारत में खेल के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी एक ही शहर हैदराबाद
से आते हैं और इन सबसे बढ़कर, कितने परिश्रम, त्याग और संघर्ष के बाद एक
विश्व-विजेता खिलाड़ी तैयार होता है।