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सिकंदर को ‘विश्व-विजेता’ कहा जाता है। वह अपने राज्य मकदूनिया से आँधी की तरह विश्व-विजय की चाह में निकला और ईरान, सीरिया, मिस्र, मेसोपोटामिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, बैक्ट्रिया को रौंदता हुआ उत्तर भारत पर छा गया। मकदूनिया को छोड़कर बाकी सभी देश इस दौरान फारसी साम्राज्य के अधीन थे और ये इलाका सम्मिलित रूप से सिकंदर के अपने राज्य से लगभग चालीस गुना बड़ा था।
356 ईसा पूर्व में जनमे सिकंदर की मृत्यु की तिथि 11 जून, 323 ईसा पूर्व बताई जाती है। समझा जा सकता है कि अपने 33 साल के जीवन में उसे क्षण भर रुकने का समय नहीं मिला होगा। अपनी दुर्धर्ष इच्छाशक्ति के बल पर वह राज्य के बाद राज्य जीतता चला गया और उतनी भूमि पर कब्जा कर लिया, जो ग्रीक लोगों को तब ज्ञात थी। महान् सिकंदर की जीवनी बताती है कि ‘मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए!’
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अनुक्रमणिका
दो शब्द —Pgs. 5
1. इतिहास का सबसे कुशल सेनापति —Pgs. 9
2. होनहार वीरवान के होते चिकने पात —Pgs. 13
3. पृष्ठभूमि —Pgs. 18
4. आरंभिक चरण —Pgs. 25
5. सिंहासन पर सिकंदर —Pgs. 33
6. युद्ध-यात्रा —Pgs. 37
7. फारस पर आक्रमण —Pgs. 44
8. डारियस से युद्ध —Pgs. 51
9. महान् विजय —Pgs. 60
10. डारियस का अंत —Pgs. 69
11. भारत में सिकंदर का अभियान —Pgs. 79
12. भारत से सिकंदर की वापसी —Pgs. 105
13. चरित्र का पतन —Pgs. 120
14. अंतिम चरण —Pgs. 130
15. मृत्यु का रहस्य —Pgs. 140
संदर्भ ग्रंथ —Pgs. 144
पेशे से अध्यापक रसिक बिहारी ‘पुरु’ की भारतीय इतिहास में विशेष रुचि है। भारतीय वीरों, रणबाँकुरों और महापुरुषों की जीवनियाँ लिखने का उन्हें बड़ा शौक है। अब तक अनेक जीवनियाँ व लेखों की रचना।