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भारत की सामाजिक एकता, उत्थान तथा राष्ट्रीय निर्माण में सिख गुरुओं का अमूल्य योगदान रहा है। प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव से लेकर दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह तक सभी दस गुरुओं का जीवनकाल कुल 239 वर्षों का रहा। इस दौरान सिख गुरुओं ने पंजाब तथा पंजाब से बाहर व्यापक भ्रमण किया और अपने उपदेश तथा व्यावहारिक जीवन द्वारा समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर उसकी दशा और दिशा ही बदल दी। आधुनिक युग का कोई भी ऐसा ज्वलंत मुद्दा नहीं, जिस पर सिख गुरुओं ने मानवमात्र को संदेश अथवा उपदेश न दिया हो। पंजाब में नए शहरों तथा जलस्रोतों आदि का निर्माण करके गुरुओं ने धर्म को विकास के साथ जोड़ा। राष्ट्र के गौरव और धर्म की रक्षा का प्रश्न आया तो छठे एवं दसवें गुरुओं ने न केवल शस्त्र धारण किए और अत्याचारी हुकूमत के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़े बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटे।
प्रस्तुत कृति ‘सिख गुरु गाथा’ सिख गुरुओं के त्याग-तपस्यामय, बलिदानी, आदर्श व प्रेरक जीवन पर प्रकाश डालने के साथ ही उनका संपूर्ण जीवन-वृत्त प्रस्तुत करती है।
जन्म : 9 जुलाई, 1955, दिल्ली।
शिक्षा : एम.ए. (दिल्ली वि. वि.)।
कृतित्व : पर्यावरण, महिला व बाल विकास तथा अन्य सामाजिक व सामयिक विषयों पर हिंदी एवं अंग्रेजी के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में पिछले दो दशक से नियमित लेखन। बच्चों के लिए कहानियाँ, यात्रा-वृत्तांत और रिपोर्ताज भी लिखे। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ समूह (मदुरै) द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी पुस्तक ‘India At 50’ में ‘भारत में शिक्षा’ पर विस्तृत लेख। ‘सरल गुरु ग्रंथ साहिब एवं सिख धर्म’, ‘मानवाधिकार : वायदे और हकीकत’, ‘दिवंगत बेटियाँ’ (देश-विदेश में बच्चियों की हत्या एवं भू्रण-हत्या के कारणों और नतीजों का खुलासा), ‘प्रगट गुराँ की देह’ (पंजाबी में), ‘साहिबजादों की लासानी शहीदी’, ‘कुछ पहलू, कुछ प्रसंग’, ‘गुरु ग्रंथ साहिब : स्वरूप, संरचना और सिद्धांत’ सहित बच्चों के लिए सात पुस्तकें।
पुरस्कार : हिंदी में उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए सन् 1992 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य तथा कृषि संगठन द्वारा ‘विश्व खाद्य दिवस पुरस्कार’ से सम्मानित।
संप्रति : राज्यसभा सचिवालय में संपादक।