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पूर्वोत्तर भारत स्थित सिक्किम में कई समुदाय निवास करते हैं, जिनकी अपनी भाषा व संस्कृति के साथ ही उनका अपना विकसित लोक है। फिर भी विकास का जो दौर वर्तमान समय को समेटे हुए है, उससे इस बात का भय व्याप्त होता है, जैसे दुनिया में मुख्यधारा की संस्कृति और उससे जुड़ी चीजें बची रहेंगी या भीड़ की शिकार हो जाएँगी! अतः समय रहते अल्पसंख्यक समुदायों के लोक-विश्वासों को जीवित रखने की अनिवार्यता स्पष्ट होती है। इस संग्रह में लोककथाओं का संचयन इसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु एक विनम्र प्रयास है।
‘सिक्किम की लोककथाएँ’ पुस्तक में जिन कथाओं का संकलन किया है, वे किसी एक जाति या विशेष समुदाय से संबद्ध नहीं हैं, बल्कि वहाँ निवास करनेवाले समुदायों में, जिनकी लोककथाएँ उपलब्ध हो पाईं, उनको समाविष्ट करने का यत्न किया गया है।
सिक्किम के बहुविध लोकजीवन की विविध छटाएँ बिखेरती ये लोककथाएँ पाठकों को आनंदित करेंगी तथा वहाँ की संस्कृति-परंपराओं से भी परिचित करवाएँगी।
चुकी भूटिया सिक्किम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें रचनात्मक क्रम में कहानियाँ व कविताएँ लिखने का शौक है। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से प्रकाशित ‘हिंदी भूटिया शब्दकोश’ के निर्माण में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सिक्किम के प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में व्यवहृत हिंदी पाठ्यक्रम निर्माण में उनकी सहभागिता रही है। पत्र-पत्रिकाओं में उनके शोध-आलेखों का निरंतर प्रकाशन होता है तथा आकाशवाणी से निरंतर वार्त्ताएँ प्रसारित होती हैं। सिलीगुड़ी युवा जागृति संघ द्वारा ‘हिंदी सेवी सम्मान’, बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन, पटना द्वारा ‘साहित्य सम्मलेन शताब्दी सम्मान’, राजस्थान की प्रसिद्ध साहित्यिक संस्था साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा ने ‘हिंदी भाषा-भूषण’ की मानद उपाधि से उन्हें सम्मानित किया है। भारतीय भाषा लोक-सर्वेक्षण द्वारा किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों में सिक्किम की भाषाओं का हिंदी अनुवाद उनके द्वारा संपन्न हुआ है।