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‘सिसकियाँ’ कहानी नारी की उस दशा का वर्णन है, जब वह ममत्व की चाह व शारीरिक कामना के वशीभूत हो जाती है और हर पल छली जाती है। अंत में वह अपनी स्थिति का आकलन अपने बेटे पर छोड़ देती है।
‘मौन’ कहानी स्वयं के मौन से जूझती एक स्त्री की कहानी है। पहले तो मौन वह हँसी-खेल में धारण करती है, बाद में वही मौन उसके जीवन का एक अंग बन जाता है।
‘कब्जा’ कहानी वर्तमान समय में जबरन भू-संपत्ति व अचल संपत्ति पर होनेवाले कब्जे का एक समाधान प्रस्तुत करती है। वास्तव में इस कहानी की रचना ट्रेन में मिले एक युवा दंपती के साथ घटी वास्तविक घटना को सुनकर की गई है। पर वे लोग अपनी संपत्ति को यों ही अपनी माँ के हत्यारों को सौंपकर चले गए। उनकी मजबूरी बहुत दिनों तक मुझे मथती रही कि आखिर भले लोगों की इस समस्या का समाधान क्या है?
इसी तरह अन्य कहानियाँ समाज के गर्भ से उत्पन्न समस्याओं पर आधारित हैं।
—लेखिका
जन्म : 2 फरवरी, 1962 को सीतापुर में।
शिक्षा : एम.ए. (आधुनिक भारतीय इतिहास), बी.एड., एल-एल.बी.।
कार्यक्षेत्र : आकाशवाणी मथुरा एवं लखनऊ केंद्र से समय-समय पर स्वरचित लघु कहानियों का प्रसारण। दूरदर्शन लखनऊ पर कविताओं का प्रसारण।
प्रकाशन : कहानी-संग्रह ‘जेवर’ तथा उपन्यास ‘दंश’ प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानियाँ एवं लेख प्रकाशित। धारावाहिक ‘चाहत अपनी-अपनी’ का पटकथा-लेखन।
पुरस्कार-सम्मान : भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा ‘पं. प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार सम्मान’ (कथा साहित्य के क्षेत्र में)।