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सीतामढ़ी की वास्तविक उपलब्धि उसके आध्यात्मिक चिंतन में देखी जा सकती है, किंतु संस्कृत और मिथिलाक्षर में लिखित एतत्संबंधी ग्रंथ इधर-उधर बिखरे हैं और दीमकों का भोजन बन रहे हैं। इन पुस्तकों को ढूँढ़ निकालना और सामने लाना कठिन, पर महत्त्वपूर्ण काम है। अगर वह सारी सामग्री प्रकाशित हो जाए तो सीतामढ़ी के वैभव का सच्चा साक्षात्कार हो सकता है। इस दिशा में पहल जब तक नहीं होगी, तब तक सीतामढ़ी की खोज अधूरी ही रहेगी।
सीतामढ़ी का विकास वास्तव में अधूरा और अटपटा है। बाढ़ और अकाल इस क्षेत्र की पुरानी समस्याएँ है। भूकंप के पश्चात् जल के जमाव से मच्छरों के प्रकोप से नई-नई बीमारियाँ सामने आई हैं। बढ़ती जनसंख्या का बोझ दुर्वह है। लोक बेकारी से बेचैन हैं। विकास की गति कुंठित है। भय, भूख और भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
यह ग्रंथ सीतामढ़ी जिले के प्रथम ‘प्रैक्टिकल गजेटियर’ के रूप में समझा जा सकता है। सीतामढ़ी पहले मुजफ्फरपुर जिले का एक अनुमंडल था। मुजफ्फरपुर जिले का पहला ‘गजेटियर’ एक अंग्रेज आई.सी.एस. अधिकारी श्री एल.एस.एस.ओ. मेली ने 1907 ई. में प्रकाशित कराया था। तब यह जिला बंगाल प्रांत का हिस्सा था। अर्धशताब्दी बीत जाने के बाद सन् 1958 में श्री पी.सी. रायचौधरी ने मुजफ्फरपुर जिले का संशोधित ‘गजेटियर’ प्रस्तुत किया था। ये दोनों ही काम सरकारी स्तर पर हुए थे। गैर-सरकारी स्तर पर नव सृजित जिले सीतामढ़ी के संबंध में ‘गजेटियर’ जैसी ही कोई चीज प्रस्तुत करने का यह पहला प्रयास है, जो सीतामढ़ी के गौरवशाली अतीत और समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन का दिग्दर्शन कराता है।
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अनुक्रम
भीजें दास कबीर —Pgs. 7
भूमिका : ‘सीतामढ़ी’ की पुनर्प्राप्ति —Pgs. 29
1. नक्सली बंदूक वाटिका में सिसकती वैदेही —Pgs. 35
2. सुलक्षणी उर्फ सुलक्ष्मी की कथा —Pgs. 73
3. माटी-पानी कहे कहानी —Pgs. 89
4. खेती-पत्ती, माल-मवेशी —Pgs. 92
5. ओह बागमती! —Pgs. 102
6. यहाँ उद्योग आज भी एक सपना है! —Pgs. 110
7. मुसीबत में सेहत —Pgs. 118
8. सीता के आँगन में सरस्वती —Pgs. 126
9. हाट-बाजार और सीतामढ़ी के मेले! —Pgs. 147
10. मंदिरों की लड़ी सीतामढ़ी —Pgs. 152
11. पर्व-त्योहार, रीति-रिवाज और लोकगीतों का सोलह शृंगार —Pgs. 176
12. राजनीति और जनप्रतिनिधित्व —Pgs. 184
13. स्वाधीनता संग्राम और सीतामढ़ी का वसंती चोला —Pgs. 188
14. सीतामढ़ी : सितारों से भरा आकाश —Pgs. 222
15. सबको सनमानिये —Pgs. 232
परिशिष्ट-1 —Pgs. 237
परिशिष्ट-2 —Pgs. 239
परिशिष्ट-3 —Pgs. 271
ललन प्रसाद सिन्हा
जन्म : 1 सितंबर, 1946 को सीतामढ़ी के भवदेवपुर गाँव में।
शिक्षा : बी.एस-सी. ऑनर्स (गणित) तथा बी.ई. (एम.)।
विशिष्ट सेवाक्रम : प्रशिक्षण और पेशे से अभियंता, किंतु मुख्यतः प्रबंधक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान। प्रबंधन, अर्थव्यवस्था, उद्योगों और तकनीकी से संबद्ध साहित्य के साथ-साथ संतों की वाणियों तथा आध्यात्मिक रचनाओं में विशेष अभिरुचि। भारत के संतों के जीवन-वृत्तों की खोज में निरंतर प्रवृत्त। श्रीकृष्ण मंदिर, मथुरा में भक्तों के लिए अपने साधनों से शौचालयों का निर्माण करवाया। निजी पुस्तकालय में पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का अनूठा संकलन। बिहार स्टेट हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के प्रबंध-निदेशक का उत्तरदायित्व सँभालते हुए अनेक निर्माण-कार्यों एवं परियोजनाओं का सफल संचालन।
विदेश : ‘यू.एन.डी.पी.’ के कार्यक्रमों के अंतर्गत इंग्लैंड, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस आदि देशों की यात्राएँ।
प्रकाशन : ब्रह्मर्षि श्री देवरहा बाबा : एक अंतर्यात्रा।
सदस्यता : एफ.आई.ई. और आई.ए. एस.एच. (इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ स्मॉल हाइड्रो), रामकृष्ण मिशन के आजीवन सदस्य। पता : राजीव सदन, 67/ई, राजेंद्र नगर, पथ-संख्या-11, पटना-800016