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कैसा है आज के टूटते-बिखरते गाँव का संपूर्ण सत्य—
जिसमें लाखों-करोड़ों गवई मनई
सांस्कृतिक खंडहरों में आर्थिक मार, सामाजिक उदासी और राजनीतिक प्रेत-बाधा के साथ
विकासी मृगमरीचिका को इकट्ठे जीते हुए,
अंधों की भाँति एक-दूसरे से टकरा रहे हैं।
और इस व्यापक जटिल सत्य को
इसकी संपूर्णता के साथ
रचनात्मक स्तर पर प्रस्तुत करना क्या आसान है?
इस कठिन कार्य को उठाया है विवेकी राय ने
गहरी निष्ठा और असीम धैर्य के साथ,
चकितकारी संतुलन-सामंजस्य के साथ तथा अपनी
जादुई कलम के सारे जोर के साथ,
प्रस्तुत कृति सोना माटी में।
और यह दावे के साथ कहा जा सकता है
कि इस महान् उपन्यास के बीच से गुजरना—
एक अंचल, एक समाज, एक देश और एक समय के साथ
अनुरंजनकारी विचारोत्तेजनाओं के रोमांच के
बीच से गुजरना सिद्ध होगा।
विवेकी राय
जन्म : 19 नवंबर, 1924 को गाँव : भरौली, जिला बलिया (उ.प्र.) में।
शिक्षा : पैतृक गाँव : सोनवानी, जिला : गाजीपुर में। शुरू में कुछ समय खेती-बारी में जुटने के बाद अध्यापन कार्य में संलग्न।
रचना-संसार : ‘बबूल’, ‘पुरुषपुराण’, ‘लोकऋण’, ‘श्वेत-पत्र’, ‘सोनामाटी’, ‘समर शेष है’, ‘मंगल-भवन’, ‘नमामि ग्रामम्’, ‘अमंगलहारी एवं देहरी के पार’ (उपन्यास); ‘फिर बैतलवा डाल पर’, ‘जुलूस रुका है’, ‘गँवई गंध गुलाब’, ‘मनबोध मास्टर की डायरी’, ‘वन-तुलसी की गंध’, ‘आम रास्ता नहीं है’, ‘जगत् तपोवन सो कियो’, ‘जीवन अज्ञात का गणित है’, ‘चली फगुनहट बौरे आम’ (ललित-निबंध); ‘जीवन परिधि’, ‘गूँगा जहाज’, ‘नई कोयल’, ‘कालातीत’, ‘बेटे की बिक्री’, ‘चित्रकूट के घाट पर’, ‘सर्कस’ (कहानी-संग्रह); छह कविता-संग्रह, तेरह समीक्षा ग्रंथ, दो व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित ग्रंथ, दो संस्मरण ग्रंथ, चार विविध, नौ ग्रंथ लोकभाषा भोजपुरी में भी, पाँच संपादन। कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद। 85 से अधिक पी-एच.डी.।
सम्मान-पुरस्कार : प्रेमचंद पुरस्कार, साहित्य भूषण तथा महात्मा गांधी सम्मान, नागरिक सम्मान, यश भारती, आचार्य शिवपूजन सहाय पुरस्कार, राष्ट्रीय शरद जोशी सम्मान, महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, सेतु सम्मान, साहित्य वाचस्पति, महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान।
स्मृतिशेष : 22 नवंबर, 2016