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"प्रस्तुत कथा सोसोबोंगा उन्हीं मुंडाओं की एक प्रसिद्ध धर्म-गाथा है। कहीं- कहीं यह 'सोसोपाड़ा' या 'सोसोटाया' भी कही जाती है। इसी के नाम पर उनका एक बहुत बड़ा पर्व मनाया जाता है। यह गीति-कथा एक साथ ही विश्व-काव्य के विकास के एक महत्त्वपूर्ण सोपान की ओर मुंडा जीवन के इतिहास में घटित होने वाली किसी विशेष घटना की ओर और फिर उस जीवन-दर्शन की ओर इंगित करती है, जो प्रारंभ से ही मुंडा का व्यावहारिक आदर्श रहा है।
इसमें ऊपर-ऊपर लय की लहरों से तरंगित अविरल प्रवाह है, जो सामान्य श्रोता को मुग्ध करता है और भीतर-भीतर ऐसे अनमोल मोती छिपे हैं, जिन्हें पाकर चतुर गोताखोर निहाल हो उठता है। यह कथा अधर्म पर धर्म की, क्रूरता पर कोमलता की और अविश्रांत कर्म-कोलाहल पर आनंद की मधुरवंशी की विजय-कथा है। साथ ही यह मुंडाओं की सृष्टि-कथा का एक रोमांचक अध्याय है।"