₹200
“तुमने मेरे सिवा किसी और का इंतजार किया है?”
“हाँ।”
“किसका?”
“जीवन का।”
“मैं तुम्हें क्या नहीं दे सकता!”
“कोई किसी को सबकुछ नहीं दे सकता। कोई किसी से सबकुछ ले नहीं सकता। इसलिए जीवन में इतनी जिज्ञासा...”
“मैं लौट जाऊँगा।”
“तुम तो आए ही नहीं हो, क्योंकि जिससे मेरी मुलाकात हुई, वह समग्र ‘तुम’ नहीं हो। मुझे जो कुछ मिला है, वह प्राप्ति का आखिरी पड़ाव नहीं है।”
वे लौट जा रहे हैं। वे फिर आएँगे, दर्शन होंगे, पुनर्वार लौट जाएँगे, फिर आएँगे; पर इंतजार का अंत कहाँ! प्रतीक्षा-विहीन जो जीवन है, वह न तो जीवन है, न मृत्यु।
—इसी पुस्तक से
ओड़िया की प्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय की ये कहानियाँ समाज और देश में फैली विद्रूपताओं पर करारी चोट करती हैं।
सामाजिक चेतना और मर्म का स्पर्श करती संवेदनशील कहानियों का पठनीय संग्रह।
जन्म : 21 जनवरी, 1943 को अलाबोल गाँव, कटक (उड़ीसा) में।
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (साइकोलॉजी)।
कुछ वर्षों तक प्राध्यापन, भुवनेश्वर के बी.जे.बी. कॉलेज में शिक्षा-शास्त्र विभाग की अध्यक्ष रहीं। अनेक सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध। उड़ीसा संघ लोक सेवा आयोग की सदस्य।
प्रकाशन : 18 उपन्यास व 15 कहानी-संग्रह, 10 यात्रा-वृत्तांत; उडि़या में प्रकाशित ‘याज्ञसेनी’, ‘शिलापद्म’, ‘अपरिचिता’, ‘नील कृष्णा’, ‘आसावरी’, ‘समुद्र स्वर’, ‘आदिभूमि’ और ‘महामोह’ उपन्यास विशेष चर्चित। अनेक रचनाएँ बांग्ला, मराठी, गुजराती, असमिया, कन्नड़, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, अंग्रेजी एवं हिंदी में अनूदित होकर प्रकाशित।
सम्मान-पुरस्कार : ज्ञानपीठ सम्मान, मूर्तिदेवी पुरस्कार, उड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार, उड़ीसा का अति महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ‘सारला पुरस्कार’, पद्मश्री, केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार।