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बंगलौर में एम.आर. हिल्स के पास विदेश से लौटे प्रवासी भारतीय डॉ.अंशुल हायरमैथ ने अपना शोध केंद्र स्थापित किया था, ताकि वह नए गर्भनिरोधक टीके के प्रभाव के बारे में परीक्षण कर सकें।
हालाँकि जल्द ही खबर फैल गई कि जिन आदिवासी महिलाओं पर इस टीके का परीक्षण किया गया था, वे गर्भवती हो गईं और उनमें से एक ने विकृत आकार के बच्चे को जन्म दिया, जो पैदा होते ही मर गया। इससे भी ज्यादा हैरत की बात यह थी कि वह भ्रूण प्रयोगशाला से गायब हो गया और पास ही स्थित एक गैर सरकारी संस्था के शिविर में पहुँच गया। ऊब रही पूर्वा ने इस कहानी का सूत्र पकड़कर इसके अविश्वसनीय रहस्य को उजागर करना शुरू किया। उसने महसूस किया कि अंशुल वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय खेल में शामिल है, जो अविश्वसनीय रूप से ऊँचे दाँव लगा रहे हैं; और एक अच्छे गर्भनिरोधक का उत्पादन होने से पहले यह खेल नहीं रुकेगा।बुद्धिमत्तापूर्ण शोध पर आधारित यह कहानी बंगलौर के फलते-फूलते दवा उद्योग के साथ आगे बढ़ती हुई एम.आर. हिल्स की आदिवासी बस्तियों से होते हुए गुजरती है तथा न्यूयॉर्क के चिकित्सा अनुसंधान के विशिष्ट जगत् तक पहुँचती है।
चिकित्सा क्षेत्र में गैट समझौते और बदलते पेटेंट कानूनों पर प्रकाश डालनेवाला रोहिणी निलेकणी का एक रोचक-रोमांचक पठनीय उपन्यास।
रोहिणी निलेकणी ‘अर्घ्यम’ की संस्थापक अध्यक्ष हैं। इसकी स्थापना उन्होंने निजी रूप से की थी। रोहिणी पत्रकार रह चुकी हैं और लेखक तथा परोपकारी महिला हैं। कई वर्षों से वे विकास के मुद्दे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने गैर-लाभकारी प्रकाशन संस्थान ‘प्रथम बुक्स’ की स्थापना की, ताकि बच्चों के लिए विभिन्न भारतीय भाषाओं में सस्ती और उच्च स्तरीय पुस्तकें प्रकाशित की जा सकें। वे प्रथम इंडिया एज्यूकेशन इनिशिएटिव (पीआईईआई) के निदेशक मंडल तथा संघमित्रा रूरल फाइनेंशियल सर्विसेज के मंडल में भी शामिल हैं। इसके पहले उन्होंने शहरी गरीबों के लिए माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रम के लिए धन मुहैया कराया था। वे जुलाई 2002 से जुलाई 2008 तक अक्षर फाउंडेशन की अध्यक्ष भी रहीं, जिसका उद्देश्य है—‘हर बच्चा स्कूल जाए और अच्छी तरह से पढे़-लिखे।’