₹300
सुबह होते उठ चले, किसी गृहस्थ के खेत,
हाथ में लिये खँचिया, काटते रहे दिन भर,
ऊपर से कड़ी धूप, नीचे पानी घुटना भर।
रोटी का एक टुकड़ा खाकर रहता गरीब बेचारा दिन भर।
शाम ढले जब आता, अपनी मजदूरी माँगता,
आज कुछ नहीं है, गृहस्थ कहता साफ।
क्या यही है- भगवान् तेरा इनसाफ ?
आज नहीं तो कल, बदलेगी इनकी तसवीर, विकास की गाथा से, ये खुद लिखेंगे अपनी तकदीर ।
- मनोज कुमार