₹175
मनुष्य इस जगत् में सफल होने ओर सुखी रहने के लिए आता है । सफल तो बहुत सारे हो जाते हैं, परंतु यह जरूरी नहीं कि प्रत्येक सफल व्यक्ति सुखी भी हो । स्पष्ट है, सुख की प्राप्ति जीवन में सफलता हासिल कर लेने से ज्यादा मुश्किल है । विपुल धन भी सुख की गारंटी नहीं दे सकता । आय की वृद्धि के साथ संतुष्टि और सुख की वृद्धि होना आवश्यक नहीं है ।
पश्चिमी समाज सुख के फॉर्मूले तलाश रहा है । लेकिन सच्चा और स्थायी सुख शायद फॉर्मूलों की बाँहों में समाता नहीं है । उसके असंख्य स्रोत हैं । उसके अनगिनत स्वरूप हैं। सुप्रसिद्ध भाषाविद् प्रखर चिंतक और यशस्वी लेखक डॉ. रमेश चंद्र महरोत्रा की यह पुस्तक उन सबके साक्षात्कार की राह बताती है । आप राह स्वयं तलाशिए और उस राह के दीपक भी स्वयं बनिए । हिंदी में जीवन-मूल्य और सुख की प्राप्ति पर केंद्रित पुस्तकों का जो विकट अभाव है, उसकी पूर्ति में डॉ. महरोत्रा की यह कृति निस्संदेह उपयोगी होगी।
जन्म : 17 अगस्त, 1934 ।
प्राप्त सम्मान : राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रादेशिक और क्षेत्रीय स्तर तक के दस सम्मान- सील ऑफ ऑनर (पूना, लखनऊ), विद्यासागर (बिहार), शब्द - सम्राट (हैदराबाद), छत्तीसगढ़ -विभूति (बिलासपुर), मायाराम सुरजन फाउंडेशन सम्मान (रायपुर) आदि ।
संबद्धता : केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के दो दर्जन आयोगों और परिषदों आदि से- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली का स्थायी आयोग, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् तथा देश की अन्यान्य संस्थाओं से भाषाशास्त्री के रूप में संबद्ध हैं ।
प्रकाशन : इकतीस पुस्तकें (हिंदी भाषा विज्ञान और हिंदी साहित्य-लेखक, संपादक आदि), तेरह सौ पचास से अधिक लेख (शताधिक पत्र-पत्रिकाओं, ग्रंथों आदि मे) ।
शोध-निर्देशन : पाँच डी.लिट., उनतालीस पी -एच.डी., छह परियोजनाएँ ।
कुछ खास : जनवरी 1992 में ' नि:शुल्क विधवा विवाह केंद्र ' की स्थापना और उसका अनवरत सफल और सुफल संचालन (सपत्नीक) ।
सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, भाषा विज्ञान एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर ।