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उस शाम हलकी सी ठंडी हवा चली और डींगीचोप्प्य पानी में तेज रफ्तार से चल पड़ी ।
“आखिर हम सामने जा रहे हैं ?'' कप्तान ने कहा।
“गोल-गोल जा रहे हैं।'' श्री मगरिज ने कहा।
परंतु हवा बहुत ताजगी भरी थी; हमारे जलते अंगों को ठंडक मिली और नींद में सहायक साबित हुई। आधी रात को मैं भूख के कारण जग गया।
“तुम ठीक तो हो ?”' मेरे पिताजी ने पूछा, जो सारे वक्त जगे हुए थे।
“केवल भूखा था।'' मैंने कहा।
“और तुम क्या खाना चाहोगे ?''
“संतरे |“
वह हँसा--''खान-पान में कोई संतरे नहीं, परंतु मैंने अपने हिस्से की एक चॉकलेट तुम्हारे लिए रख ली थी; और थोड़ा पानी भी है, अगर तुम प्यासे हो तो।'' मैंने बहुत देर तक चॉकलेट अपने मुँह में रखी; कोशिश करके कि वह अधिक समय चले। उसके बाद मैंने चुस्की ले-लेकर पानी पिया।
“क्या आपको भूख नहीं लगी?'' मैंने पूछा।
भुक्खड़ों के समान! मैं तो पूरी तुर्केऊ खा सकता हूँ। जब हम बंबई जाएँगे या मद्रास या कोलंबो या जहाँ कहीं भी हम पहुँचेंगे, हम शहर के सबसे अच्छे रेस्तराँ में जाएंगे और ऐसे खाएँगे जैसे जैसे ।
-इसी पुस्तक से
सुप्रसिद्ध कहानीकार रस्किन बॉण्ड की बाल कहानियाँ न केवल मनोरंजक होती हैं, बल्कि प्रेरणादायी भी | हर कहानी में बच्चों के लिए अनुकरणीय सीख अवश्य रहती है|
जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था। बचपन में ही मलेरिया से इनके पिता की मृत्यु हो गई, तत्पश्चात् इनका पालन-पोषण शिमला, जामनगर, मसूरी, देहरादून तथा लंदन में हुआ। इनकी रचनाओं में हिमालय की गोद में बसे छोटे शहरों के जन-जीवन की छाप स्पष्ट है। इक्कीस वर्ष की आयु में ही इनका पहला उपन्यास ‘द रूम ऑन रूफ’ (The Room on Roof) प्रकाशित हुआ। इसमें इनके और इनके मित्र के देहरा में रहते हुए बिताए गए अनुभवों का लेखा-जोखा है। भारतीय लेखकों में बॉण्ड विशिष्ट स्थान रखते हैं। उपन्यास तथा बाल साहित्य की इनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने 1999 में इन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।