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Author Mahatma Gandhi
Features
  • ISBN : 9789380839400
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Mahatma Gandhi
  • 9789380839400
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2020
  • 128
  • Hard Cover

Description

पढ़ने-लिखने में एक साधारण सा बालक। मैट्रिक पास करके बड़े सपने लिये लंदन में वकालत पढ़ने जाता है कि वापस लौटकर ढेर सारा पैसा कमाएगा। लेकिन बैरिस्टर बनने के बाद जब वह भारत लौटता है तो उसकी वकालत चल नहीं पाती। उसका झेंपू और दब्बू स्वभाव उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देता है। केस लड़ते समय उसे पसीना आ जाता है, पैर काँपने लगते हैं और जज तक उसका मजाक उड़ाते हैं। लेकिन जब वह शख्स दक्षिण अफ्रीका में नस्ल-भेद का शिकार होता है तो उसमें न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ जाती है कि वह अंग्रेजी शासन से मुकाबले को उद्यत हो जाता है। इस हिम्मत के चलते वह लाखों देशवासियों को वर्षों की यातना से मुक्ति दिलवाता है और वही साधारण व्यक्ति शनै:-शनै: मानव से महात्मा में तब्दील हो जाता है।
गांधीजी ने इसे ‘सत्य की ताकत’ कहा है। सत्य के आग्रह को कुछ समय के लिए तो दबाया जा सकता है, लेकिन वह शाश्वत होता है; अंत में उसे स्वीकार करना ही होगा। सत्याग्रह की इसी ताकत ने गांधीजी को महात्मा बनाया और उन्होंने देश की आजादी के लिए प्रत्येक देशवासी को एक सिपाही में तब्दील कर दिया। दुखी मानवता के उद्धार के लिए गांधीजी जीवन भर लड़ते रहे।
प्रस्तुत पुस्तक में महात्मा गांधी के प्रेरणादायी एवं मागदर्शक कथनों को प्रस्तुत किया गया है। आशा है, सुधी पाठक एवं विद्यार्थी इससे खूब लाभान्वित होंगे।

The Author

Mahatma Gandhi

2 अक्‍तूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जनमे मोहनदास करमचंद गांधी विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्‍त कर बैरिस्टर बने। उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए आजादी की लड़ाई में सत्याग्रह और अहिंसा को अपना अस्त्र बनाया।
गांधीजी ने अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास में ‘फीनिक्स’ आश्रम की स्थापना की तथा वहाँ से ‘इंडियन ओपिनियन’ अखबार निकाला। स्वदेश लौटकर आजादी की लड़ाई के पथ-प्रदर्शन बने। उन्होंने ‘हरिजन’ सहित कई समाचार-पत्रों का संपादन किया तथा अनेक पुस्तकें लिखीं। बापू ने ‘सत्याग्रह’, ‘सविनय अवज्ञा’, ‘असहयोग आंदोलन’ तथा ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलनों का नेतृत्व कर भारत को स्वतंत्र कराया।
समाज-सुधारक और विचारक के रूप में भी उनका योगदान अनुपम है। जातिवाद, छुआछूत, परदा-प्रथा, बहु-विवाह, विधवाओं की दुर्दशा, नशाखोरी और सांप्रदायिक भेदभाव जैसी अनेक सामाजिक बुराइयों के सुधार हेतु रचनात्मक संघर्ष किया और राष्‍ट्रीय एकता के लिए हिंदी को ‘राष्‍ट्रभाषा’ घोषित किया।
स्मृतिशेष : 30 जनवरी, 1948।

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