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‘सूरज मेरे साथ में’ चार उपन्यासों का संकलन है। बाल एवं किशोर मन की दैनंदिन समस्याओं से जुड़े ये चारों उपन्यास सचमुच सूरज की ऐसी उजली किरण हैं, जो बच्चों के पथ को प्रकाशित करने में समर्थ हैं।
‘परीक्षा के बाद’ गौरव का स्कूली परीक्षा के साथ-साथ जीवन के इम्तिहान में भी ऊँचे अंक लेकर सफलता पाने का किस्सा है। बच्चों के लिए पल-पल जिन रोचक-रोमांचक घटनाओं की पिटारी खुलती है, वे उन्हें चमत्कृत किए बिना नहीं रहतीं।
‘खट्टी-मीठी गोलियाँ’ में बाल-मजदूरी उन्मूलन की बात कही गई है।
‘मुझे तो पढ़ना है’ में शिक्षा के बाल अधिकार को एक निर्धन तदपि पढ़ने की ललक रखनेवाले बालक के माध्यम से दरशाया गया है।
‘सूरज मेरे साथ में’ भी कथानायक रोशन के हौसलों की उड़ान है, जो उसे सफलता दिलाती है।
कुल मिलाकर चारों उपन्यास बच्चों को सद्गुणों से तो जोड़ते ही हैं, जीवन के प्रति समझ भी जगाते हैं। कदाचित् यही आज के समय की माँग भी है।
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अनुक्रम
परीक्षा के बाद—9
खट्टी-मीठी गोलियाँ—63
मुझे तो पढ़ना है—87
सूरज मेरे साथ में—117
डाॅ. कामना सिंह
जन्म : आगरा (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र, हिंदी), पी-एच.डी. (दर्शनशास्त्र, हिंदी), बी.ए., एम.ए. (द्वय) की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान सहित अनेक स्वर्ण पदक।
बच्चों एवं बड़ों के लिए समान दक्षता से लेखन।
प्रकाशित बाल-साहित्य : चर्चित लोकप्रिय पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : उ.प्र. हिंदी संस्थान, लखनऊ से नामित सूर पुरस्कार तथा निरंकार देव सेवक बाल साहित्य इतिहास लेखन सम्मान। ‘हवा को बहने दो’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
विशेष : पत्र-पत्रिकाओं में व्यापक प्रकाशन। ‘बोल मेरी मछली’ पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोध कार्य। पाठ्यक्रम में रचनाओं का संकलन।
अनेक कला प्रदर्शनियों में सहभागिता।