₹175
कलह-द्वेष, घृणा-ईर्ष्या सबके सब पैठ जाते हैं मन की नाकबंदी करने के लिए। प्रेम और प्रीत का निर्वासन हो जाता है सदा-सदा के लिए। रोती फिरती है सद्भावना जंगल-जंगल। पल भर टिकने को ठौर नहीं मिलता उसे। यही सब ओछापन मुझे नहीं भाता। इनका स्पर्श भी मेरे लिए प्राणघातक है पिताजी, तब मैं अंधा हो जाऊँगा। कद बौना हो जाएगा। लिलिपुटियन बनकर रह जाऊँगा मैं। मेरे अंदर, जहाँ मेरा कोमल, सरल और सरस हृदय है, वहाँ कोई पत्थर का टुकड़ा जुड़ जाएगा। मैं आपको भी भूल जाऊँगा। माँ को भूल जाऊँगा। भाई-बहनों को भूल जाऊँगा। सारी दुनिया को भूल जाऊँगा। अपने प्यारे किसानों और मेहनती साथियों को भी याद नहीं रख पाऊँगा। मेरे अंदर कोई राक्षस, कोई दैत्य बड़े-बड़े दाँतों और बीभत्स चेहरा लिये समा जाएगा। किसी से बेईमानी और किसी से लड़ाई करूँगा। न्याय का गला घोंट अन्याय को गले लगाऊँगा। फिर अपनी ही तरह के लोगों की आबादी बढ़ाऊँगा। पूरी दुनिया का हक हड़पने की योजना बनाऊँगा और इसके बाद...
—इसी संग्रह से
सुरेश कांटक ऐसी कहानियाँ नहीं लिखते, जो अपने पाठकों को या तो रुला देती हैं या फिर सुला देती हैं। उनकी कहानियाँ पाठकों को जगाती और बेचैन करती हैं। ये कहानियाँ हमारी कल्पना, संवेदनशीलता और सोच को गतिशील बनाकर नैतिक दायित्व का बोध कराती हैं। बिना किसी तरह की कलाबाजी के ये कहानियाँ सहज लेकिन धारदार भाषा में गाँव की जिंदगी की हर तरह की स्थितियों और अनुभूतियों को मूर्त और सजीव रूप में हमारे सामने लाती हैं। मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकारों को दरशाती मर्मस्पर्शी कहानियाँ।
जन्म : 15 जनवरी, 1954 को ग्रा. व पो.-कांट, जिला-भोजपुर (अब बक्सर) में।
शिक्षा : एम.ए., बी.एड.।
प्रकाशन : हिंदी—‘एक बनिहार का आत्मनिवेदन’, ‘जमीन’, ‘जनता की अदालत’, ‘जग मुसाफिर भोर भयो’, ‘खंडित सपनों का नायक’ (कहानी संग्रह); ‘नरमेध’, ‘जनगायक’ (उपन्यास); ‘रक्तिमतारा’ (प्रबंध काव्य); ‘ढोल का पोल’, ‘स्वर्ग-नरक’, ‘कैसी जनता’, ‘करिश्मा’, ‘लोकंतत्र जिंदाबाद’, ‘राजा जी के भूत’ (लघु नाटक पत्रिकाओं में प्रकाशित।) लगभग डेढ़ सौ कहानियाँ देश की तमाम प्रतिष्ठित-चर्चित पत्रिकाओं में प्रकाशित-चर्चित। भोजपुरी में दस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। दर्जनों महत्त्वपूर्ण संकलनों मे कहानियाँ संकलित। शेक्सपीयर के महत्त्वपूर्ण नाटक जूलियस सीजर के अतिरिक्त देशी-विदेशी प्रसिद्ध कहानियों का भोजपुरी भाषा में अनुवाद। दूरदर्शन, आकाशवाणी से कहानी, कविताएँ प्रसारित।
हिंदी कहानी में उल्लेखनीय योगदान हेतु 1993 का ‘ बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’। भोजपुरी नाटक ‘हाथी के दाँत’ के लिए 1998 का ‘जगन्नाथ सिंह पुरस्कार’। भोजपुरी कहानी संग्रह ‘समुंदर सुखात बा’ के लिए ‘अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मान’। भोजपुरी नाटक ‘वंदेमातरम्’ के लिए 2005 का भोजपुरी विकास मंडल सीवान से विशिष्ट सम्मान। नाट्य मंचन एवं रंग-कर्म में विशेष रुचि।
संस्थापक : कबीर कला मंच, कांट, बक्सर
संपर्क : कांट (ब्रह्मपुर), बक्सर-802992