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वरिष्ठ पत्रकार बी.जी. वर्गीज़ की पैनी दृष्टि ने भारत के समक्ष मुँह बाए खड़ी समस्याओं—उग्रवाद व नक्सलवाद, भाषा व संस्कृति से जुड़े मुद्दे, दलित एवं जातिवाद, कट्टरवाद व पुनर्जागरण, आदिवासी तथा अल्पसंख्यक; भूमि, वन, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण व भूमंडलीकरण से जुड़े विवाद तथा ग्लोबल वार्मिंग आदि से हमारा परिचय कराया है। इनकी जड़ खोजते हुए विद्वान् लेखक का निष्कर्ष है कि ये समस्याएँ औपनिवेशिक मानसिकता, सामाजिक विषमता, मानवाधिकारों के प्रति असंवेदनशील दृष्टि का ही दुष्परिणाम हैं। भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है; लेकिन अभी भी बहुत कुछ ऐसा है, जो नहीं हो पाया; उसे लेकर चिंता करना स्वाभाविक है। इससे जनाक्रोश भी फैल रहा है। वर्गीज़ का मानना है कि देश के व्यापक हित में इन चुनौतियों से धैर्यपूर्वक ही निपटा जा सकता है।
हमें एक ऐसा तंत्र विकसित करना होगा, जिससे राष्ट्रीय व क्षेत्रीय एकता के संबंधों को मजबूती मिले और समुदायों में भाईचारा बढ़े। आखिरकार यही तो भारत की विशिष्टता है।
वरिष्ठ स्तंभकार एवं लेखक। वे सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, दिल्ली केंद्र के विजिटिंग प्रोफेसर हैं, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के अध्यक्ष हैं तथा दिल्ली पॉलिसी ग्रुप की सुरक्षा पीठ से भी संबद्ध हैं। उन्होंने दिल्ली तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया, तदुपरांत ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से जुड़े। वे ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ (1969-75) तथा ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (1982-86) के संपादक रहे। 1975 में उन्हें पत्रकारिता के लिए प्रतिष्ठित ‘मैग्सेसे अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। वे 1966-68 तक भारत के प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार रहे और अनेक समितियों, आयोगों तथा गैर-सरकारी संगठनों व संस्थानों से संबद्ध रहे। उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं—‘वाटर्स ऑफ होप’, ‘इंडियाज नॉर्थ-ईस्ट रिसर्जेंट’, ‘रीओरिएंटिंग इंडिया : द न्यू जिओ-पॉलिटिक्स ऑफ एशिया’ तथा ‘वारियर ऑफ द फोर्थ एस्टेट : रामनाथ गोयनका’।