₹200
"सूर्य का आमंत्रण—मकरंद दवे
सालेह आमरी नामक संत बार-बार कहते रहते थे कि जब कोई दरवाजा खटखटाता रहता है तो कभी-न-कभी वह खुल ही जाता है। सूफी संत राबिया के सामने भी जब उन्होंने अपना यह वाक्य दोहराया तब उन्होंने प्रतिप्रश्न किया, पहले यह तो बताइए कि दरवाजा बंद कब था कि अब खुलेगा?
सियाहपोश से किसी ने पूछा कि आप मुद्दे की बात क्यों नहीं कहते? हम अपनी प्रगति कर सकें, ऐसी दलीलें और सबूत हमें क्यों नहीं सिखाते?
सियाहपोश ने जवाब दिया। आटा, चीनी, घी और अग्नि आदि जब अलग-अलग रहते हैं, तब ठीक है; पर जब वे साथ मिल जाते हैं तो थोड़े ही समय में उसका स्वादिष्ट हलुआ बन जाता है।
—इसी पुस्तक से
गुजराती के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री मकरंद दवे द्वारा विचरित जीवन की व्यावहारिक बातों के इस संग्रह ‘सूर्य का आमंत्रण’ आपके मन-मस्तिष्क का कोना-कोना आनंद से, उत्साह से, संवेदनाओं की ऊँचाइयों से आलोकित कर देगा। यह ‘सूर्य का आमंत्रण’ मानो संन्यासी को, साधक को, गृहस्थ को, विद्यार्थी को, सामाजिक कार्यकर्ता को, यानी सभी को अपना-अपना पाथेय देनेवाला द्रौपदी का अक्षयपात्र है।
सूर्य का यह आमंत्रण अधिकाधिक पाठक स्वीकार करें तथा अपने मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक भावविश्व के कोने-कोने को आलोकित करें, इसी में इस पुस्तक के प्रकाशन की सार्थकता है। "