सुर्यबाला की जीवन-दृष्टि सतह पर बहते जीवन-प्रवाह की गहराई में प्रवेश करती है। मनुष्यता के क्षरण से जूझते स्त्री-पुरुष उन्हें वहीं मिलते हैं। लेखिका का रचनात्मक विकास निरंतर विसंगतियों से भरे समाज के वास्तविक हिस्सों को पहचानकर उनके संघर्ष को उद्घाटित करने की दिशा में हुआ है। उनकी ‘होगी जय, होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन!’ जैसी कहानियाँ मनुष्य को बौने और मोहताज बना देनेवाले दुर्दांत समय की पहचान करती हैं, तो ‘माय नेम इश ताता’ की नन्ही ताता के केंद्र से सूर्यबाला स्वार्थ, अवसरवाद, प्रदर्शनप्रियता और शहरातीपन से उपजे विघटन एवं संवेदनहीनता की टोह लेती हैं। लेखिका ने ऐसे आशयों को गहरे व्यंग्य में सँभाला है। यह व्यंग्य, उनकी मूल्य चेतना का निर्वाह भी करता है। सूर्यबाला जीवन के सुदृढ़ मानवीय आधारों पर गहरा विश्वास करती हैं। जटिलताओं से भरे युगबोध की उन्हें बराबर पहचान है, किंतु इसके मुकाबले खड़े जीवन-मूल्यों का भरोसा भी उन्हें मिलता है। अपनी कहानियों में वे बड़ी सावधानी से मार्मिकता को पूरे असर में उभारने वाली भाषा निर्मित करती हैं। मर्म-स्पर्शिता लेखिका के लिए एक अनिवार्य रचना-मूल्य है।
—डॉ. चंद्रकला त्रिपाठी
(वरिष्ठ समीक्षिका एवं कवयित्री)
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अनुक्रम
अपनी कहानियों के बीच मैं —Pgs. 5
1. हाँ, लाल पलाश के फूल...नहीं ला सकूँगा... 11
2. एक इंद्रधनुष जुबेदा के नाम —Pgs. 25
3. मेरा विद्रोह —Pgs. 34
4. कंगाल —Pgs. 41
5. न किन्नी, न —Pgs. 53
6. तोहफा —Pgs. 74
7. रमन की चाची —Pgs. 83
8. सुम्मी की बात —Pgs. 104
9. बाऊजी और बंदर —Pgs. 112
10. होगी जय, होगी जय...हे पुरुषोाम नवीन! —Pgs. 127
11. दूज का टीका —Pgs. 140
12. बिहिश्त बनाम मौजीराम की झाड़ू —Pgs. 155
13. कागज की नावें, चाँदी के बाल —Pgs. 161
14. माय नेम इश ताता —Pgs. 170
जन्म : 25 अक्तूबर, 1943 को वाराणसी (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (रीति साहित्य—काशी हिंदू विश्वविद्यालय)।
कृतित्व : अब तक पाँच उपन्यास, ग्यारह कहानी-संग्रह तथा तीन व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित।
टी.वी. धारावाहिकों में ‘पलाश के फूल’, ‘न किन्नी, न’, ‘सौदागर दुआओं के’, ‘एक इंद्रधनुष...’, ‘सबको पता है’, ‘रेस’ तथा ‘निर्वासित’ आदि। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता। अनेक कहानियाँ एवं उपन्यास विभिन्न शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित। कोलंबिया विश्वविद्यालय (न्यूयॉर्क), वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय (त्रिनिदाद) तथा नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी एवं व्यंग्य रचनाओं का पाठ।
सम्मान-पुरस्कार : साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए अनेक संस्थानों द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत।
प्रसार भारती की इंडियन क्लासिक श्रृंखला (दूरदर्शन) में ‘सजायाफ्ता’ कहानी चयनित एवं वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में पुरस्कृत।
इ-मेल : suryabala.lal@gmail.com