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बिहार लोकतंत्र का तीर्थ कहा जाता है। बिहार के लोकतंत्र में जाति है, रंगदारी है, छल-कपट है और बूथ की लूट भी! लोकतांत्रिक राजनीति के छह दशक बाद भी बिहार में बेहद गरीबी है, बदहाली है, सार्वजनिक जीवन की न्यूनतम सुविधाओं का घोर अभाव है। यह पुस्तक हमारी भेंट बिहार में लोकतांत्रिक राजनीति के उस चेहरे से करवाती है, जो भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक राजनीति का सबसे पेचीदा सवाल है। बिहार में सुशासन तभी कारगर व प्रभावी होगा, जब भूमि सुधार, समान शिक्षा विधेयक, किसान आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा। एक सुखद पहलू है कि आज बिहार में तथा बिहार से बाहर रहने वाले प्रत्येक बिहारी के मन में साहस और गर्व की अनुभूति है। लगभग 85-90 प्रतिशत लोगों ने यह माना है कि नीतीश कुमार के शासनकाल में सड़कें बनी हैं, कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधरी है।
पुस्तक में शामिल आम लोगों की चिट्ठियाँ बिहार में सुशासन का प्रमाण हैं। समाज के अलग-अलग तबकों, खासतौर से बहिष्कृत समाज की आवाज को शामिल करना इस पुस्तक की एक विशिष्ट उपलब्धि है।
जन्म : 5 फरवरी, 1982 को कटिहार (बिहार) में।
शिक्षा : दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम.फिल. एवं ‘सुशासन : दिल्ली में भागीदारी के विशेष संदर्भ में’ विषय पर अपना लघु शोध-पत्र लिखा। भारतीय जनसंचार संस्थान से हिंदी पत्रकारिता में डिप्लोमा।
सम्मान : सन् 2006-07 में भारतीय जनसंचार संस्थान में यू.एन.आई. अवार्ड से सम्मानित।
संप्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय से ‘राज्य और बाढ़ नियंत्रण की राजनीति’ विषय पर पी-एच.डी. कर रहे हैं।
संपर्क : pankaj_panku07@yahoo.com