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कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है। परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है। वास्तव में संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियाँ हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएँ भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं। समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है। स्थियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है।
कहानियाँ संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुँथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं। कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियाँ अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं।
वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियाँ समय का दर्पण बनकर उभरी हैं।
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अनुक्रम
1. बढ़ता हुआ पानी—7
2. मेमना—14
3. फंदा—21
4. ठूँठ—26
5. कोहरा—33
6. बाँबी—45
7. यू सिंह लापता है—52
8. रिज पर फौजी—58
9. बसेरा—65
10. अटकाव—74
11. अनुपस्थित—89
12. प्रेम का अंतरराष्ट्रीय संस्करण—103
13. अपने-अपने दुःख—112
14. फासला—119
15. ककून—123
16. जिजीविषा—135
17. जंगल—146
18. बाहर का आदमी—154
19. साँप—167
20. किलेबंदी—173
जन्म : 15 अगस्त, 1941
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी) तथा पी-एच.डी. (हिंदी)।
कृतित्व : वरिष्ठ कथाकार, साहित्येतिहासकार, आलोचक के रूप में हिंदी जगत् में समादृत। हिंदी एवं अंग्रेजी में लेखन। भारत की प्रमुख हिंदी-अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। अनेक पुस्तकें संपादित। त्रैमासिक पत्रिका ‘रचना’ का दो दशकों तक संपादन।
सम्मान-पुरस्कार : ‘हारे हुए लोग’ उपन्यास के लिए हि.प्र. का सर्वोच्च साहित्य सम्मान; ‘मिट्टी की गंध’ उपन्यास पर हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी का पुरस्कार; ‘यूँ सिंह लापता है’ कहानी-संग्रह के लिए अकादमी पुरस्कार; ‘मेमना’ कहानी पर अखिल भारतीय पुरस्कार; ‘हीरो की वापसी’ कहानी पर भास्कर रचना पर्व पुरस्कार, ‘यशपाल सम्मान’, हिमोत्कर्षक श्रेष्ठ राज्य पुरस्कार, हिम केसरी, पंकस अकादमी, जालंधर का सम्मान, पंजाब कला साहित्य अकादमी, लुधियाना का सम्मान, ‘शिखर सम्मान’ आदि।
संप्रति : सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन।