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Swachchhata Sanskar    

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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 9789351867234
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Mridula Sinha
  • 9789351867234
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2016
  • 176
  • Hard Cover

Description

स्वच्छता एक संस्कार है। शिशु के अंदर स्वच्छता के भाव भरे जाते हैं। उन्हें स्वच्छतापूर्ण व्यवहार सिखाए जाते हैं। दादी और माँ को लिपे-पुते घर-आँगन तथा चौकाघर को प्रणाम करके ही प्रवेश करते देख शिशु भी अनुकरण करता रहा है। प्रातःकाल दातून करने से लेकर स्नान करते समय सभी अंगों की सफाई, मन को उत्सवीय ही बनाता है। बचपन में डाले गए स्वच्छता के ये संस्कार व्यक्ति के जीवन-व्यवहार में सहज अभ्यास बन जाते हैं। 
भारतीयों की पहचान है स्वच्छता। प्रतिदिन स्नान, शरीर की सफाई, प्रतिपल अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और संतोष की सोच, आंतरिक स्वच्छता है। घर, आँगन, गली-मुहल्ले की सफाई बाहरी स्वच्छता है।
भारत में स्वच्छता अभियान अवश्य सफल होगा। स्वच्छता मात्र एक नारा नहीं, समाज के जीवन-व्यवहार में ढलकर पुनः अभ्यास बन जाएगी। विश्व-पटल पर पुनः भारत की विशेष पहचान बनाने में स्वच्छतापूर्ण जीवन पहली 
सीढ़ी होगा।
इस पुस्तक में स्वच्छता के भारतीय इतिहास और वर्तमान के साथ व्यक्तिगत व्यवहार में शामिल करवाने के उपाय संकलित किए गए हैं। आशा है, यह पुस्तक स्वच्छता के प्रति हमारी दृष्टि स्वच्छ और स्पष्ट करेगी, जिसकी महती आवश्यकता है।

 

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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