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मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी जिस रफ्तार से नई-नई दवाइयाँ ईजाद कर रहे हैं, नई-नई बीमारियाँ उससे कहीं ज्यादा तेजी से पैदा हो रही हैं।
दरअसल यह पुस्तक देशी चिकित्सा की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने के विशेष उद्देश्य से लिखी गई है। पुस्तक में अधिकतर ऐसे ही नुस्खों को शामिल करने का प्रयास किया गया है, जो सरलता से उपलब्ध हो जाएँ तथा घर बैठे ही बनाए जा सकें। ये सभी नुस्खे ऐसे हैं, जो विभिन्न चिकित्सकों व प्रबुद्ध लोगों द्वारा आजमाए जा चुके हैं और कारगर सिद्ध हुए हैं। वास्तव में इन नुस्खों का आहार-विहार के साथ प्रयोग करने से कई स्थितियों में अस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर लगाने की मुसीबतों से बचा जा सकता है। स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियाँ, जो हजारोें रुपए गँवा चुकने के बाद भी जस-की-तस बनी रह जाती हैं, वे मात्र चंद रुपयों की लागतवाले इन नुस्खों से ठीक की जा सकती हैं।
भारतीय चिकित्सा विज्ञान का मर्म समझाती है यह पुस्तक। विश्वास है कि आमजन को अपनी सेहत का खयाल रखने में इससे भरपूर मदद मिलेगी।
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अनुक्रम
पुस्तक पढ़ने के पहले — 5
आयुर्वेद के पक्ष में — 11
कुछ सावधानियाँ — 15
1. स्वास्थ्य रक्षा के अनमोल सूत्र — 19
2. सेहत के कुछ जरूरी सवाल — 22
3. बीमारियों की पहचान का आयुर्वेदिक विज्ञान — 39
खंड : एक
अंगों की देखभाल और रोगों की सरल चिकित्सा
4. दूर कीजिए कजियत — 53
5. पाचन-तंत्र के विविध रोग — 57
6. ताकि याददाश्त बनी रहे — 68
7. शिरोरोग में लाभकारी प्रयोग — 72
8. झड़ते बालों को बचाइए — 76
9. कैसे आए चेहरे पर रौनक — 82
10. ताकि आँखें ताउम्र देखती रहें — 86
11. दाँतों की सलामती के लिए — 92
12. निरोगी त्वचा के लिए — 98
13. विभिन्न चर्मरोगों की चिकित्सा — 101
14. हृदय, फेफड़े, यकृत के रोग — 105
15. कुछ विशेष रोग : दमा-श्वास, मधुमेह, क्षय, कैंसर — 112
16. कुछ विशेष पुरुष रोग — 119
17. विविध सामान्य रोगों की चिकित्सा — 124
18. आकस्मिक रोग और दुर्घटनाएँ — 140
19. बच्चों की बीमारियाँ — 144
20. महिलाएँ सेहत बचाएँ — 146
21. गर्भ सुरक्षा और स्वस्थ संतान — 162
खंड : दो
अनुभवी वैद्यों के अनुभूत नुस्खे
22. अनुभवी वैद्यों के अनुभूत नुस्खे — 169
परिशिष्ट
23. सदाबहार यौवन के लिए — 205
जन्म : 10 जुलाई, 1970।
शिक्षा : समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर।
प्रतिष्ठि समाजकर्मी संत समीर उन कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों में से हैं, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार बहुराष्ट्रीय उपनिवेश के खिलाफ आवाज उठाते हुए अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में स्वदेशी-स्वावलंबन का आंदोलन पुनः शुरू किया। समाजकर्म के ही समानांतर लेखन में भी उनकी सक्रियता बराबर बनी हुई है। संख्यात्मक रूप से कम लिखने के बावजूद आपकी लिखी कुछ पुस्तकें और आलेख खासे चर्चित रहे। हैं। कुछ लेखों की अनुगूँज संसद् और विधानसभाओं तक भी पहुँची है। वैकल्पिक चिकित्सा, समाज-व्यवस्था, भाषा, संस्कृति, अध्यात्म आदि आपकी रुचि के खास विषय रहे हैं।
वैकल्पिक पत्रकारिता की दृष्टि से नब्बे के दशक की प्रतिष्ठित फीचर सर्विस ‘स्वदेशी संवाद सेवा’ के आप संस्थापक संपादक रहे। बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद, वैश्वीकरण, डब्ल्यूटीओ जैसे मुद्दों पर बहस की शुरुआत करनेवाली इलाहाबाद से प्रकाशित वैचारिक पत्रिका ‘नई आजादी उद्घोष’ के भी संपादक औ सलाहकार संपादक रहे। व्यावसायिक पत्रकारिता के तौर पर कुछ अखबारों व न्यूज एजेंसियों के लिए खबरनवीसी भी की। कुछ समय तक क्रॉनिकल समूह के पाक्षिक ‘प्रथम प्रवक्ता’ से जुडे़ रहने के बाद फिलहाल हिंदुस्तान टाइम्स समूह की मासिक पत्रिका ‘कादंबिनी’ से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा रेडियो लेखन और विभिन्न टी.वी. चैनलों के कार्यक्रमों में भी जब-तब आपकी सक्रियता बनी रहती है।
कृतियाँ : ‘सफल लेखन के सूत्र’ (1996), ‘स्वदेशी चिकित्सा’ (2001), ‘सौंदर्य निखार’ (2002), ‘स्वतंत्र भारत की हिंदी पत्रकारिता : इलाहाबाद जिला’ (शोध प्रबंध, 2007) ‘हिंदी की वर्तनी’ (2010), पत्रकारिता के युग निर्माता : प्रभाष जोशी (2010)।
संपर्क : सी-319/एफ-2, शालीमार गार्डन एक्सटेंशन-2, साहिबाबाद, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
मोबाइल : 9868202052, 9868902022
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