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Swadheenata Sangram Ke Sunahare Prasang   

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Author Roop Narain
Features
  • ISBN : 9788177213843
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Roop Narain
  • 9788177213843
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2024
  • 244
  • Soft Cover
  • 350 Grams

Description

स्वाधीनता संग्राम के यज्ञ में अनेक महापुरुषों ने अपने जीवन की आहुतियाँ दीं। उनका व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व हमारे लिए अनुकरणीय भी है और आचरणीय भी। वे हमारे आदर्श हैं।...किसी ने सच ही कहा है कि जो राष्ट्र अपने इतिहास-पुरुषों को विस्मृत कर देता है उसके क्षरण में अधिक देर नहीं लगती। अत: हमारा यह दायित्व बनता है कि हम अपने उन इतिहास-पुरुषों के संबंध में जानें और उनके व्यक्तित्व के अनेक सद्गुणों को आत्मसात् करें।
आज चारित्रिक प्रदूषण के इस वातावरण में हमारी वर्तमान और आनेवाली पीढ़ी के सामने अपने उन महापुरुषों की चरित्र-गाथाओं को उपलब्ध कराना अत्यावश्यक हो गया है, जिन्होंने अपना सबकुछ न्योछावर करके देश का नवनिर्माण किया और उसे सँवारा।
प्रस्तुत पुस्तक में दिए गए प्रसंग किस्से या इतिहास नहीं हैं। ये गाथाएँ हैं—गाथाएँ, जो संस्कृति बनाती हैं, देशभक्तिपूर्ण एवं आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।...हमें विश्वास है, यह पुस्तक पाठकों को देशभक्त नागरिक बनाने में प्रमुख भूमिका निभाएगी।

The Author

Roop Narain

16 अक्‍तूबर, 1914 को जनमे श्री रूपनारायण स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक, रचनात्मक कार्यकर्ता एवं समाजवादी चिंतकों की श्रेणी में एक आदर्श व्यक्‍त‌ित्व के धनी रहे हैं। परतंत्र भारत में चार बार जेल की यातनाएँ भोगने के बाद स्वतंत्र भारत में भी अनेक बार उन्हें अपनी राजनीतिक एवं सामाजिक भूमिका के कारण जेल जाना पड़ा। आपत्काल के दौरान वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित जन संघर्ष समिति के संयोजक रहे। उन्होंने पैंतालीस वर्ष तक अखिल भारतीय नशाबंदी समिति के महामंत्री पद पर अवैतनिक कार्य किया। वे दिल्ली में ‘रैन बसेरा’ अभियान के जनक रहे हैं। दिल्ली के सहकारी आंदोलन में उनका योगदान अद्वितीय रहा है। उन्होंने भारत में प्रचलित धर्मों के विषय में परस्पर जानकारी के अभाव की पूर्ति-स्वरूप तीन पुस्तकों ‘राष्‍ट्रीय एकता के प्रतीक : हमारे पर्व’, ‘भारतीय सहअस्तित्व के प्रतीक : हमारे विभिन्न धर्म’ और ‘भारतीय एकता के स्तंभ : हमारे आस्था स्थल’ की रचना की।

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