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अप्प दीपो भव
‘‘जिस भूमि की मिट्टी से तुम्हारी देह बनी है, जिसकी गंगा का तुमने निर्मल जल पिया है और जिसके गौरव के सामने संसार का कोई देश ठहर नहीं सकता, उस पवित्र भारत-भूमि में रहते हुए तुम उसके यश को उज्ज्वल करोगे, यह मुझे पूरी आशा है। इसके साथ ही जिस सरस्वती की कोख से तुमने दूसरा जन्म लिया है, उसे मत भूलना। मैं तुमसे गुरु-दक्षिणा नहीं माँगता। गुरु-दक्षिणा देना तुम्हारा धर्म है, माँगना मेरा धर्म नहीं। मैं तुमसे यह भी नहीं पूछता कि तुम्हारे राजनीतिक, सामाजिक या मानसिक विचार क्या-क्या हैं। मैं केवल तुमसे यही पूछता हूँ कि क्या तुम्हारे सब काम सत्य पर आश्रित हैं या नहीं? स्मरण रखो, यह संसार सत्य पर आश्रित है। सत्य के बिना राजनीति धिक्कारने योग्य है, सत्य के बिना समाज के नियम पददलित करने योग्य हैं। यह सत्य तुम्हारे जीवन का अवलंबन है, तो मुझे न कोई चिंता है और न ही कुछ माँगना है।’’
गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कुलपति स्वामी श्रद्धानंद के दीक्षोपदेश का अंश।
रचना-संसार :‘देवरात’, ‘श्रुतिपर्णा’, ‘पर्णगंधा’, ‘मुकुट प्रजा का’ (काव्य), ‘तुलनात्मक साहित्य शास्त्र’, ‘उत्तरभारत के निर्गुण पंथ साहित्य का इतिहास’, ‘रीतिकाल के ध्वनिवादी हिंदी आचार्यों का तुलनात्मक अध्ययन’, ‘आधुनिक हिंदी लेखन की ऊर्जा’, ‘दशमहाविद्या मीमांसा’, ‘श्रीमद्भागवत प्रवचन’, ‘आचार्य श्रीचंद्र की विचारधारा’, ‘स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती’, ‘आचार्य किशोरी दास वाजपेयी’, ‘डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल’, ‘सुमित्रानंदन पंत का सत्यकाम’, ‘स्वामी श्रद्धानंद के संपादकीय लेख’, ‘स्वामी श्रद्धानंद की संपादकीय टिप्पणियाँ’, ‘आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ग्रंथावली’ (छह खंड), ‘डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ग्रंथावली’ (छह खंड) तथा ‘हिंदी साहित्य का मध्यकाल’।
सम्मान :अ.भा. भवानीप्रसाद मिश्र काव्य पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद्; साहित्य भूषण सम्मान, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान; मौलाराम साहित्य सम्मान, उत्तराखंड भाषा संस्थान; विद्यावाचस्पति, हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग; वरिष्ठ साहित्यकार सम्मान, संस्कृति मंत्रालय, देहरादून; ड्यूक ऑफ हेजर्ड, केंटुकी (यू.एस.ए.)।
संपर्क :4, भगवंतपुरम्, पो. कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड-249408