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पुस्तक ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ एवं ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ दोनों एक ही साधक अर्थात् डॉ. कुसुम गौड़, जो कि अपनी स्वयं की अनुभूति करने के लिए इस यात्रा पर निकलती हैं, की अनुभूतियों का संग्रह
है, जो क्रमशः अलग-अलग तरह से वर्णित है।
जहाँ ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ उन पद्यों का संकलन है, जो साधक को इस यात्रा के दौरान स्वयं अनुभूत होकर स्वयं की भावलहरियों से समय-समय पर प्रस्फुटित हुए तथा ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ इस साधक की स्वयं की ओर क्रमिक गति व अलग-अलग स्तर पर हुई अनुभूतियों व उनकी समझ का वर्णन है।
इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान इस साधक को क्या-क्या परेशानियाँ आईं, कैसी-कैसी रुकावटें आईं, कैसे उनका निराकरण हुआ तथा कैसे उनसे निपटना हुआ, उनका वर्णन है।
वैसे तो ये दो अलग-अलग पुस्तक भी हो सकती हैं, परंतु इन दोनों को एक साथ रखने का उद्देश्य भी यही है कि पाठकगण ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ में वर्णित अनुभूतियों व उनकी समझ को ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ में लिखे गए पद्य तथा उसके लिखने के समय से जोड़कर देख सकें।
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अनुक्रम | |
स्वयं की ओर : एक यात्रा | 30. तेरी याद — Pgs. 152 |
प्राक्कथन — Pgs. 9 | 31. प्रेम से भरा दिल — Pgs. 153 |
1. प्रस्तावना — Pgs. 15 | 32. मैं आई प्रभु — Pgs. 154 |
2. पूर्व आध्यात्मिक सूत्र — Pgs. 16 | 33. जाने कौन घड़ी — Pgs. 155 |
3. पूर्व आध्यात्मिक सूत्र का विलुप्तीकरण — Pgs. 18 | 34. मेरा ध्यान तो — Pgs. 156 |
4. पूर्व आध्यात्मिकता का पुनउर्द्भव एवं प्रगति — Pgs. 19 | 35. हरदम तेरी लगन — Pgs. 157 |
5. गुरु के प्रति समर्पण भाव — Pgs. 39 | 36. मैं हूँ कहाँ — Pgs. 158 |
6. गुरुदेव की वास्तविकता का ज्ञान होना — Pgs. 45 | 37. कहाँ-से-कहाँ — Pgs. 159 |
7. एकांत चिंतन — Pgs. 54 | 38. किस्मत बदल गई — Pgs. 162 |
8. सद्ज्ञानानुभूति — Pgs. 56 | 39. मेरे जीवन के जीवन — Pgs. 163 |
9. स्वयं की भूमिका — Pgs. 59 | 40. अधर हिंडोला : दिव्य निद्रा — Pgs. 164 |
10. सद्गुरु की भूमिका — Pgs. 60 | 41. दृष्टि पलट — Pgs. 166 |
11. सद्गुरु की आवश्यकता — Pgs. 61 | 42. एकमात्र इष्ट गुरुदेव — Pgs. 169 |
12. सद्ज्ञान आत्मसातीकरण — Pgs. 63 | 43. तू मेरी सरकार — Pgs. 170 |
13. भ्रमण एवं अनुभूति संग्रहण — Pgs. 66 | 44. गाऊँ गुण तेरे — Pgs. 171 |
14. उपसंहार — Pgs. 69 | 45. अनोखा दान — Pgs. 173 |
आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से | सोपान-3 |
प्राक्कथन — Pgs. 93 | ज्ञानानुभूतियॉँ एवं सच्चिदानंद |
सोपान-1 | 1. ईश्वर ही सार — Pgs. 177 |
प्रार्थना एवं मन संबोधन | 2. परम संतुष्टि — Pgs. 179 |
1. एक गुजारिश (गुरुदेवजी के सामने सर्वप्रथम आने पर गाया भजन) — Pgs. 99 | 3. एका-द्वैत का खेल — Pgs. 180 |
2. मेरी तमन्ना (गुरु दीक्षा के दिन गाया भजन) — Pgs. 100 | 4. एक ही काम — Pgs. 181 |
3. सतशिष्य बनने की चाह — Pgs. 101 | 5. जाने न कोई तुझको — Pgs. 183 |
4. अरजी — Pgs. 102 | 6. एक राज की बात — Pgs. 184 |
5. कहाँ से तू आया है इतना तो सोच — Pgs. 103 | 7. सतलोक दर्शन — Pgs. 186 |
6. किस विधि रिझाऊँ मैं — Pgs. 105 | 8. प्रभुवर की कृपा ने मेरा जीवन बदल दिया — Pgs. 187 |
7. आरजू — Pgs. 106 | 9. तेरा नाम लेना तेरे लिए जीना — Pgs. 189 |
8. मेरा लक्ष्य — Pgs. 107 | 10. मेरा जीवन नया मेरी दुनिया नई — Pgs. 190 |
9. कृपा करो — Pgs. 108 | 11. रे मन मेरे तू सुमिरि हरि — Pgs. 191 |
10. मेरी विनती — Pgs. 109 | 12. प्रेम तत्त्व की कहानी — Pgs. 193 |
11. तू मुझको बचा — Pgs. 110 | 13. प्रेम की अजब रीत — Pgs. 196 |
12. बंधन टूटे ना — Pgs. 111 | 14. ‘मैं’ मिल गई — Pgs. 197 |
13. मन काहे न सुधि करे — Pgs. 112 | 15. मेरा परिचय — Pgs. 198 |
14. दिल की तमन्ना — Pgs. 113 | 16. एक अहसास हूँ मैं — Pgs. 199 |
सोपान-2 | 17. धन्य वो घड़ी — Pgs. 200 |
दिव्यानुभूतियॉँ एवं समर्पण | 18. सर्वव्याप्त राम — Pgs. 202 |
1. मेरी अभिलाषा समर्पण के साथ — Pgs. 117 | 19. हम तो हैं शरण तिहारी — Pgs. 203 |
2. मेरी मंजिल — Pgs. 118 | 20. जो कुछ है सो तू ही है — Pgs. 204 |
3. हरि विछोह — Pgs. 119 | 21. प्रभु तुम ही तो दिल में बसे हो — Pgs. 206 |
4. एक तमन्ना — Pgs. 120 | 22. मैं तुमसे क्या माँगूँ — Pgs. 208 |
5. अनोखा अज्ञान — Pgs. 121 | 23. मुसाफिर की मंजिल — Pgs. 209 |
6. मेरी वसीयत — Pgs. 123 | 24. तुझसे मेरा रिश्ता सनातन — Pgs. 211 |
7. दिव्यानुभूति — Pgs. 124 | 25. सर्वस्व मुझको मिल गया — Pgs. 214 |
8. ऐसी किरपा कर दो प्रभु — Pgs. 126 | 26. कृपा की कृपा — Pgs. 216 |
9. मेरे अंतर में कोई तेरा नाम ले — Pgs. 127 | 27. किस्मत बदल गई — Pgs. 218 |
10. अंतरतम की चाह — Pgs. 128 | 28. बड़ा ही मजा है तेरे सजदे में — Pgs. 219 |
11. करूँ मैं वही — Pgs. 129 | 29. दिल की नजर — Pgs. 221 |
12. मेरा मैं खो गया — Pgs. 131 | 30. For Those - Who wants to Enjoy — Pgs. 223 |
13. गुरुदेव मुझको सँभालो — Pgs. 132 | 31. सबकुछ है पर कुछ भी नहीं — Pgs. 225 |
14. प्रेम का रंग — Pgs. 133 | 32. सर्वस्व तुझमें मिल गया — Pgs. 227 |
15. मधु की तलब — Pgs. 134 | 33. वारी जाऊँ चरणों में — Pgs. 228 |
16. साँचा साथी — Pgs. 135 | 34. स्वकेंद्र की अनंत से अनंत तक की यात्रा — Pgs. 230 |
17. ऊँची अटरिया — Pgs. 136 | 35. रब दी मरजी — Pgs. 235 |
18. सौंप दिया पतवार — Pgs. 137 | 36. नाम की करामात — Pgs. 236 |
19. नाथ मैं तेरी ही हूँ — Pgs. 138 | 37. तेरी कृपा ने ये क्या कर दिया — Pgs. 238 |
20. गुरुदेव से अरजी — Pgs. 139 | 38. अनजाने सफर की मंजिल : आनंद शहर — Pgs. 240 |
21. इकरार यही करालूँ — Pgs. 141 | 39. संग-संग तेरे मैं कहाँ आ गई — Pgs. 243 |
22. तुझ संग जीना — Pgs. 143 | 40. आत्मा की पूर्व गति व पश्चिम गति — Pgs. 244 |
23. दिल का तराना — Pgs. 144 | 41. जाने कोई कैसे तुझको — Pgs. 246 |
24. अनुरूप तुम बना लो — Pgs. 145 | 42. प्रभु तेरी लीला अपरंपार — Pgs. 247 |
25. तुमसे लगन लगी — Pgs. 146 | 43. Who am I? — Pgs. 249 |
26. मेरा सजन — Pgs. 148 | 44. खुद-से-खुद का मिलन — Pgs. 251 |
27. तेरे बिन कुछ भी नहीं — Pgs. 149 | 45. तेरा अस्तित्व — Pgs. 253 |
28. तू ही बना है मेरा जमाना — Pgs. 150 | 46. मन से ऊपर रहनि — Pgs. 255 |
29. मोहब्बत का ऐलान — Pgs. 151 |
पुस्तक ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ एवं ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ दोनों एक ही साधक अर्थात् डॉ. कुसुम गौड़, जो कि अपनी स्वयं की अनुभूति करने के लिए इस यात्रा पर निकलती हैं, की अनुभूतियों का संग्रह है, जो क्रमशः अलग-अलग तरह से वर्णित है।
जहाँ ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ उन पद्यों का संकलन है, जो साधक को इस यात्रा के दौरान स्वयं अनुभूत होकर स्वयं की भावलहरियों से समय-समय पर प्रस्फुटित हुए तथा ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ इस साधक की स्वयं की ओर क्रमिक गति व अलग-अलग स्तर पर हुई अनुभूतियों व उनकी समझ का वर्णन है।
इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान इस साधक को क्या-क्या परेशानियाँ आईं, कैसी-कैसी रुकावटें आईं, कैसे उनका निराकरण हुआ तथा कैसे उनसे निपटना हुआ, उनका वर्णन है।
वैसे तो ये दो अलग-अलग पुस्तक भी हो सकती हैं, परंतु इन दोनों को एक साथ रखने का उद्देश्य भी यही है कि पाठकगण ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ में वर्णित अनुभूतियों व उनकी समझ को ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ में लिखे गए पद्य तथा उसके लिखने के समय से जोड़कर देख सकें।