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यह कोई कहानी नहीं है, न ही कोई साक्षात्कार है। पर हाँ, यह एक विवरण है...भावनाओं का, प्यार का, वात्सल्य का, कृतज्ञता का, दुआ का, आभार का, मुकद्दर का, अद्भुत संयोग का, शक्ति का, संपर्क का, संभावनाओं का, खुशी का...और एक माँ-बेटी के अतुल्य रिश्ते का।
प्यार के भिन्न रूपों में एक रूप है— ‘वात्सल्य’ का और यही सर्वोपरि है।
इस पुस्तक में एक माँ ने अपनी तरफ से अपनी बेटी को जीवन से संबंधित सिर्फ सामाजिक-सांस्कृतिक-पारिवारिक ज्ञान ही नहीं, वरन् स्नेहिल आभार सहित धन्यवाद भी दिया है।
वो बेटी जो अपनी माँ का
अभिमान भी है, स्वाभिमान भी;
मार्गदर्शिका भी है, प्रेरणा भी;
सखी भी है, हमराज भी;
शिष्य तो है ही पर गुरु भी!
‘स्वेतिमा’, जिसका तात्पर्य है दुनिया को प्रकाशित करती एक चामत्कारिक रोशनी, जिसने चहुँओर अपना तेज फैलाना शुरू कर दिया है।
स्वेता परमार ‘निक्की’ का जन्म अप्रैल 1976 में राजस्थान के ‘गुलाबी शहर’ जयपुर में हुआ। स्कूली शिक्षा यहीं से हुई। राजस्थान विश्वविद्यालय से इंग्लिश ऑनर्स किया, तदुपरांत हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय से बी.एड. पूरी की। विवाह के बाद पहले दिल्ली में और अब उत्तर प्रदेश में अपने परिवार के साथ रहती हैं।
पेशे से बिजनेस वुमेन होने के बावजूद मन लेखनी में रमा रहा। अपनी पहली ही किताब ‘द जेस्टफुल हाइव’ (अंग्रेजी) में जिंदगी के तमाम एहसासों-भावनाओं को बड़ी सहजता से पेश करके चर्चा में आईं और उसे पाठकों ने खूब पसंद किया। मन से निकले विचारों को सहज रूप से कागज पर उकेरने की उनकी खूबी पाठकों को अपनी ओर खींचती है।