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रामचरितमानस’ में शिव, सती और पार्वती की कथा विश्वास, संशय और श्रद्धा के अन्त:सम्बन्धों को रूपायित करती है। इसमें शिव विश्वास हैं, सती संशय और पार्वती श्रद्धा। जब जीवन में संशय का आगमन होता है तो विश्वास खण्डित होता है और अमर प्रेम मृत्यु को समर्पित हो जाता है। संशय सबसे पहले विश्वास पर ही प्रहार करता है। संशय जितना प्रभावी होगा, विश्वास उतना ही कमजोर। संशय से नाता जुड़ते ही विश्वास से नाता टूट जाता है। सती जैसे ही संशयी हुईं, शिव रूपी विश्वास से उनका नाता टूट गया। संशय और विश्वास एक साथ चल ही नहीं सकते। एक की रक्षा के लिए दूसरे को आत्मबलिदान करना ही होगा। ‘मानस’ में कथा राम के आदर्शों की स्थापना की है, इसलिए संशय मरा, सती को आत्मदाह करना पड़ा। कथा जीवन की क्षुद्रताओं की होती तो विश्वास मरता, शिव को नष्ट होना पड़ता। शिव बचे तो विश्वास बचा, विश्वास बचा तो राम बचे और राम बचे तो राम को हृदय में धारण करनेवाला समाज बचा। जब जीवन में श्रद्धा का आगमन होता है तो दुर्बल विश्वास भी चट्टान की तरह सुदृढ़ हो जाता है। श्रद्धा-विश्वास के मिलन से प्रेम अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। विश्वास रूपी शिव श्रद्धा रूपी पार्वती को प्राप्त कर प्रेम के अलौकिक प्रतीक अर्धनारीश्वर बन जाते हैं। श्रद्धा और विश्वास से बना जीवन कभी टूटता नहीं। जब जीवन रूपी गंगा का एक तट विश्वास का शिव हो और दूसरा तट श्रद्धा की पार्वती तो ‘रामकथा मुद मंगल मूला’ की पवित्र धारा बहेगी ही। ऐसी गंगाधारावाला परिवार और समाज न कभी नष्ट होगा, न कभी दु:ख-दैन्य से पराजित होगा।
मॉरीशस में पं. राजेन्द्र अरुण ‘रामायण गुरु’ के नाम से जाने जाते हैं। उनके अथक प्रयत्न से सन् 2001 में मॉरीशस की संसद् ने सर्वसम्मति से एक अधिनियम (ऐक्ट) पारित करके रामायण सेण्टर की स्थापना की। यह सेण्टर विश्व की प्रथम संस्था है, जिसे रामायण के आदर्शों के प्रचार के लिए किसी देश की संसद् ने स्थापित किया है। पं. राजेन्द्र अरुण इसके अध्यक्ष हैं। 29 जुलाई, 1945 को भारत के फैजाबाद जिले के गाँव नरवापितम्बरपुर में जनमे पं. राजेन्द्र्र अरुण ने प्रयाग विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में चुना। सन् 1973 में वह मॉरीशस गये और मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम के हिन्दी पत्र ‘जनता’ के सम्पादक बने। उन्होंने वहाँ रहते हुए ‘समाचार’ यू.एन.आई. और ‘हिन्दुस्तान समाचार’ जैसी न्यूज एजेंसियों के संवाददाता के रूप में भी काम किया। सन् 1983 से पं. अरुण रामायण के कार्य में जुट गये। उन्होंने नूतन-ललित शैली में रामायण के व्यावहारिक आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। रेडियो, टेलीविजन, प्रवचन और लेखन से वे अपने शुभ संकल्प को साकार कर रहे हैं।