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विद्यावारिधि संस्थान का पवित्र लक्ष्य माल-टाल बनाना है। माल और टाल दोनों के बनाने को वह टाल नहीं सकता। ज्ञानशून्य बेरोजगार इंजीनियरों, डॉक्टरों की फौज बढ़ाने में वह असाधारण रूप से सफल है। इस तकनीकी कॉलेज में उन शिक्षकों को अधिक वेतन देय है, जिन्हें पढ़ाने से मतलब नहीं पर जो दूर-दराज से सत्रह की उम्र से सत्तर की उम्र के ज्ञानपिपासुओं के प्रवेश करा देते हैं।
ऊँची राशि देनेवाले डिग्री के आकांक्षी छात्रों पर यह कॉलेज दो सालों से निगाह टिकाए था। गत वर्ष ही परीक्षा के बाद संस्थान ने उन्हें डायरी दी, केलकुलेटर दिए, प्रवेश के बाद हर एक को लेपटॉप भी देगा। यह कॉलेज नई पीढ़ी के प्रति अतिशय संवेदनशील और करुणा से ओत-प्रोत है। विद्यार्थी भले ही पास क्लास या तीसरी श्रेणी में अभी तक उत्तीर्ण होता रहा हो, उस ज्ञानपिपासु को इंजीनियरिंग डिग्री में निन्यानबे प्रतिशत अंक दिलवाने की गारंटी रहती है।
कलकत्ता में नौकरी करनेवाला युवक एक हजार किलोमीटर दूर स्थित गोपालनगर के इस इंजीनियरिंग कॉलेज का नियमित छात्र रह सकता है। बस वर्ष में दो दिन परीक्षा फॉर्म भरने आना पड़ता है। यदि किसी ने कॉलेज का फूल तोड़ा तो फाइन, यूनिफॉर्म पहनकर नहीं आया तो फाइन। एवरीव्हेयर फाइन। कॉलेज इज रीयली फाइन।
इंजीनियरिंग कॉलेज, उनमें प्रवेश पाने के हथकंडे, उनके परिवेश, शिक्षा का स्वरूप, शिक्षकों की स्थिति—सबका बड़ी बेबाकी से वर्णन किया है। प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रो. हरि जोशी ने तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में भीतर तक पैठ कर चुकीं विकृतियों को उद्घाटित करनेवाला एक सशक्त व्यंग्य उपन्यास।
जन्म : 17 नवंबर, 1943 को ग्राम खूदिया (सिराली), जिला हरदा (म.प्र.) में।
शिक्षा : एम.टेक. (इंजीनियरिंग मेटीरियल्स), पी-एच.डी. (रेफ्रीजेरेशन)।
प्रकाशन : ‘पँखुरियाँ’, ‘यंत्रयुग’, ‘River and other poems’ (U.S.) (कविता संग्रह); ‘अखाड़ों का देश’, ‘रिहर्सल जारी है’, ‘व्यंग्य के रंग’, ‘भेड़ की नियति’, ‘आशा है सानंद हैं’, ‘पैसे को कैसे लुढ़का लें’, ‘सारी बातें काँटे की’, ‘आदमी अठन्नी रह गया’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘नेता निर्माण उद्योग’, ‘किस्से रईसों के’, ‘My Sweet Seventeen’ (व्यंग्य संग्रह); ‘पगडंडियाँ’, ‘महागुरु’, ‘वर्दी’, ‘टोपी टाइम्स’ (उपन्यास); ‘पनहियाँ पीछे पड़ीं’, ‘किस्से-नवाबों-रईसों के’, ‘यंत्र सप्तक में सम्मिलित’ (अन्य रचनाएँ); ‘How to ruin your love life’ (अनुवाद) के अलावा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से प्रसारित।
सम्मान : ‘व्यंग्य के रंग’ पर म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन का ‘वागीश्वरी सम्मान’, म.प्र. लेखक संघ का ‘व्यंग्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री’, ‘साहित्य मनीषी’’ सम्मान, ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ आदि।
संप्रति : सेवानिवृत्त प्राध्यापक, मेकैनिकल इंजीनियरिंग (म.प्र.) शासन।