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तमाशा मेरे आगे’ का ‘कैनवास’ बहुत बड़ा है। हेमंत शर्मा के लेखों का दायरा इतना व्यापक है कि समूची कायनात इसमें समा जाए। प्रकृति, समाज, उत्सव, संस्कृति, सरोकार, रिश्ते, नाते, दोस्त, देवता, दानव—क्या नहीं है इन लेखों में। विषय भले अलग-अलग हों, लेकिन सब पर एक तीखी बनारसी दृष्टि है। हेमंत शर्मा ने जो तमाशा देखा है, वही लिखा है और वही जिया है। बनारस से उनका जुड़ाव है—उस बनारस से, जो विश्वनाथ की नगरी है—दुनिया उसी की माया है। उसी तमाशे का हिस्सा है। इन लेखों में पिता, माँ, घर, परिवार, गृहस्थी जिसका भी जिक्र है, ये सब उसी तमाशे में शामिल हैं। लोकजीवन की ढेर सारी छवियाँ इस संकलन में कैद हैं।
किताब की सबसे बड़ी खूबी इसकी रेंज है। कबीर चौरा से लेकर अस्सी तक इसका दायरा है, इसमें राम भी हैं, कृष्ण भी, शिव भी हैं और रावण भी। सभी ऋतुएँ हैं। वसंत है। सावन है। शरद है तो ग्रीष्म भी। कोई ऋतु नहीं बची है। पौराणिक मिथकों की भी चर्चा है।
हिंदी गद्य के इतिहास में मैं जिनके गद्य को सबसे अच्छा मानता हूँ, वे हैं पं. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’। ‘उसने कहा था’ उनकी प्रसिद्ध कहानी है। हिंदी का सर्वश्रेष्ठ गद्य मैं इसे ही मानता हूँ। ठीक ऐसी ही बोलचाल की भाषा यहाँ भी है। छोटे-छोटे वाक्य। बोलते हुए टकसाली शब्दों से गढ़े वाक्य। बिलकुल ठेठ हिंदी का ठाठ। हर वाक्य की शक्ति उसकी क्रिया में। घाव करे गंभीर। यह भाषा हेमंत शर्मा के बनारसी तत्त्व को रेखांकित करती है। हेमंत ने हिंदी के लेखक होने का हक अदा कर दिया है।
—नामवर सिंह
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क्रम
हेमंत का अंदाज-ए-बयाँ और —Pgs. 7
मेरी बात —Pgs. 15
1. कबीरचौरा —Pgs. 21
2. केसन असि करी —Pgs. 25
3. दुष्टता —Pgs. 29
4. महिमा मालिश की —Pgs. 33
5. हाशिये का पंछी —Pgs. 37
6. पालतू के सुख —Pgs. 41
7. तोता होता! —Pgs. 45
8. यादों में गौरैया —Pgs. 50
9. दिल्ली उनका परदेस —Pgs. 54
10. माँ ऐसे बनती है —Pgs. 59
11. चाची की याद —Pgs. 63
12. बिन मामा सब सून —Pgs. 67
13. मर्यादा के राम —Pgs. 71
14. उन्मुत कृष्ण —Pgs. 75
15. सत्य के शिव —Pgs. 79
16. आज भी रावण —Pgs. 83
17. मातृ रूपेण संस्थिता —Pgs. 87
18. सृष्टि का यौवन बसंत —Pgs. 91
19. सावन राग —Pgs. 95
20. शरद का सौंदर्य —Pgs. 99
21. ग्रीष्म का ताप —Pgs. 103
22. कलुष होती होली —Pgs. 108
23. वर्ष प्रतिपदा —Pgs. 113
24. आस्था का कुंभ —Pgs. 118
25. मिष्टान्न महाराज —Pgs. 123
26. लोकमंगल के संवाहक —Pgs. 127
27. जमाई के जलवे —Pgs. 131
28. बिलाती पाती —Pgs. 135
29. ताज का तिलिस्म —Pgs. 139
30. वह अकेली द्रौपदी —Pgs. 143
31. अपने मूल पर —Pgs. 154
32. निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊँगा —Pgs. 161
33. मुँहफट बनारसी —Pgs. 164
34. मैंने उन्हें देखा है —Pgs. 170
35. पानी पर इतिहास —Pgs. 174
36. चित्र परदेस के —Pgs. 178
37. विश्वनाथ से सोमनाथ —Pgs. 184
38. अथ: दखिन यात्रा —Pgs. 190
39. जाहि देख रीझे नयन —Pgs. 196
40. हिरिस —Pgs. 201
41. तमाशा मेरे आगे —Pgs. 206
जन्म और संस्कार पाया काशी में। समाज, प्रकृति, उत्सव, संस्कृति का ज्ञान यहीं हुआ। शब्द, तात्पर्य और धारणाओं की समझ भी वहीं बनी।
नौकरी के लिए लखनऊ में रहे। वहीं राजनीति के बहुलवादी चरित्र, समाज परिवर्तन, सांप्रदायिकता, दलित-उभार, चुनाव संबंधी अध्ययन हुआ। पंद्रह साल तक जनसत्ता के राज्य संवाददाता रहने के बाद दो साल हिंदुस्तान, लखनऊ में संपादकी की। फिर लंबे अर्से तक टीवी पत्रकारिता । अब दिल्लीवास। लेकिन बनारस भी छूटा नहीं।
अयोध्या आंदोलन को काफी करीब से देखा। ताला खुलने से लेकर ध्वंस तक की हर घटना की रिपोर्टिंग के लिए अयोध्या में मौजूद इकलौते पत्रकार। |
व्यवस्थित पढ़ाई के नाम पर बी.एच.यू. से हिंदी में डॉक्टरेट। लिखाई में समकालीन अखबारी दुनिया में कलम घिसी। कितना लिखा? गिनना मुश्किल है। गिनने की रुचि भी कभी नहीं रही। भारतेंदु समग्र का संपादन जरूर याद है। कैलास-मानसरोवर की अंतर्यात्रा कराती पुस्तक द्वितीयोनास्ति' बहुचर्चित । व्यक्ति, समाज, समय, उत्सव, मौसम पर केंद्रित किताब 'तमाशा मेरे आगे' बहुपठित। ।
राजनीति, समाज, परंपरा को समझने और पढ़ने का क्रम अब भी अनवरत जारी।
पहले लेखन को गुजर-बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का। संपर्क : जी-180, सेक्टर-44, नोएडा।
इ-मेल : hemantmanusharma@gmail.com