₹250
लोककथाएँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जो विरासत में मिली है। लोककथाओं का संबंध लोकोक्तियों से है। हर युग का सांस्कृतिक संघर्ष, प्रचलित प्रथाएँ, मान्यताओं, रीति-रिवाजों, आचार-विचार और वहाँ के अनुभवी लोगों के मुख से सुनी कथाएँ ही लोककथाओं का स्रोत बनती है। ग्रामीण परिवेश में लोककथाओं के माध्यम से वहाँ के समाज की सभ्य, सुशील, नीतिपरक बातों की जानकारी और आदर्श जीवन की सीख भी जन-जन तक पहुँचाने का काम करती हैं।
अधिकांश लोककथाओं को बच्चे तक सीमित कर दिया गया है, जबकि बड़ों के लिए भी सीखने की कई बातें इसमें हम ढूँढ़ सकते हैं। नीतिपरक और धर्मपरक कथाओं के माध्यम से आज भटकते हुए युवा-जगत् को प्रेरणा दी जा सकती है। परंपराओं की तरफ लौटना आज की माँग बन पड़ा है। आज परंपरा, लोक और संस्कृति का अर्थ बदलते जा रहा है। इसका समाधान तभी संभव है, जब हम मानव की चेतना को जगाएँ। ऐसी प्रेरणादाय लोककथाओं को इस संग्रह में संकलित किया गया है। हम आशा करते हैं कि इन लोककथाओं के माध्यम से मानव को आशावादी और सकारात्मक सोच देने में सफलता पाएँगे।
डॉ. ए. भवानी
जन्म 27 अक्तूबर, 1953 को पुणे महानगर में हुआ। तमिल, हिंदी, अंग्रेजी भाषाओं में दक्ष। प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में हुई और उच्च शिक्षा—एम.ए., एम.फिल, अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा एवं
पी-एच.डी. की पढ़ाई चेन्नई स्थित द.भा.हि.प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध-संस्थान में संपन्न हुई। सन् 1983 से 1988 तक मद्रास के आकाशवाणी में विविध भारती की उद्घोषिका रहीं। उसके उपरांत कई कॉलेजों में स्नातक स्तर के लिए प्रवक्ता का कार्य भी किया। 1988 से 1991 तक कोट्टयम् में हिंदुस्तान न्यूज प्रिंट लि. में हिंदी अधिकारी के पद पर कार्य किया। 1997 से 2014 तक अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों में अध्यापन किया। 2014 को सेवानिवृत्ति के बाद अभी मदुरै में ‘द अमेरिकन कॉलेज’ के हिंदी विभाग में पुनः सहायक प्रवक्ता के रूप में कार्यरत।
इनके मार्गदर्शन में 10 पी-एच.डी. के शोधार्थी और 55 एम.फिल. के शोधार्थी सफलतापूर्वक डिग्री प्राप्त करके विभिन्न स्कूल और कॉलेजों में कार्यरत हैं। आठ पुस्तकें प्रकाशित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 50 से अधिक शोधपरक लेखों का प्रकाशन। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 2014 में ‘सौहार्द पुरस्कार’ से सम्मानित किया। अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ की प्रांतीय संयोजिका हैं