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तनाव साधारणत: आग, वस्तुत: उन दहकते अंगारों की तरह है, जो हमेशा दहकते रहते हैं। हम इस पर नियंत्रण करें, ताकि यह हमें नुकसान न पहुँचा सके। हम इस धधकती ज्वाला को हवा न दें, इसी में हमारी भलाई है।
तनाव का होना इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आप युवा हैं या वृद्ध, लड़का हैं या लड़की, अमीर हैं या गरीब, साक्षर हैं या निरक्षर, सेवक हैं या स्वामी; और न ही तनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहाँ रहते हैं—न्यूयॉर्क में या नई दिल्ली में, छोटे शहर में या गाँव में, ऋषिकेश में या माउंट एवरेस्ट पर।
तनाव तन को खा जाता है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है कि तनाव से दूर रहा जाए, उससे मुक्ति पाई जाए। सुप्रसिद्ध मोटिवेशन गुरु प्रमोद बत्रा ने जो सूत्र बताए हैं, वे जीवन को हँसकर मुसकराते हुए जीने के मूलमंत्र हैं। स्वयं में एक सकारात्मक भाव जगाइए; स्वयं को प्रोत्साहित कीजिए; सुविचारों का निर्माण कीजिए; दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलिए; गुस्से को अपना दास बनाइए; जो मिले, उसमें संतोष कीजिए; क्षमा करना सीखिए, आदि-आदि।
अगर आप उपरिलिखित गुरुमंत्र सीख गए तो इस पुस्तक का लेखन सफल होगा और आप तनाव को बाय-बाय कर पाएँगे।
व्यक्तित्व विकास एवं व्यवहार-प्रबंधन की पुस्तकों के सुपरिचित लेखक हैं। अमेरिका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा से एम.बी.ए. करने के उपरांत वे तैंतीस वर्ष तक भारत के प्रमुख उद्योग समूह ‘एस्कॉर्ट्स’ से संबद्ध रहे और अनेक उच्च पदों पर आसीन रहे। हिंदी-अंग्रेजी में मानव-व्यवहार से संबंधित उनकी 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। देश-विदेश में व्यवहार-प्रबंधन पर 1 हजार से अधिक सेमिनारों का आयोजन भी कर चुके हैं।