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क्या आप जानते हैं कि सेना एक ऐसा पेशा है, जो आपको विचित्र चीजें करने की छूट देता है, जैसे स्काई डाइविंग, रैली ड्राइविंग, पर्वतारोहण, काम पर जाने के लिए हेलीकॉप्टर उड़ाने जैसा काम। आप किसी अन्य क्षेत्र में कल्पना कर सकते हैं क्या? आपको उस काम के लिए पैसा दिया जाता है, जिसे पूरा करने के लिए आप कहीं और खर्च करने के लिए तत्पर रहते हैं और संभव है कि वे अवसर जीवन में शायद कभी हाथ नहीं आते।
यह पुस्तक आपको बताएगी कि सेना के अधिकारी वास्तव में करते क्या हैं और इसके लिए 21 सैन्य अधिकारियों के जीवन की असल कहानियों के माध्यम से आपको रू-ब-रू कराया जाएगा। तथ्य यह है कि सेना के हर अधिकारी के पास दिलचस्प कहानी होती ही है बताने के लिए। लेकिन चूँकि उनको अपने काम और मिशनों के बारे में ज्यादा बात करने की छूट नहीं होती, इसलिए हम उनके तमाम साहसिक कारनामों के बारे में न सुन पाते हैं, न जान पाते हैं। ऐसा शायद पहली बार है, जबकि भारतीय फौजियों ने अपने हैरतअंगेज अनुभव साझा किए हैं।
युवाओं को उत्साहित करने की अद्भुत क्षमता रखनेवाली ये कहानियाँ उन्हें राष्ट्र-कार्य हेतु सक्रिय होने के लिए प्रेरित करेंगी।
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अनुक्रम
प्रस्तावना —Pgs. 7
परिचय —Pgs. 11
एक धागे से बँधी जीवन की डोर
1. मैं अपने काम पर हेलीकॉप्टर से जाता हूँ —Pgs. 19
2. मैं शायद जिंदा न बचता —Pgs. 30
3. वह जमीन की सतह से 30 फीट नीचे पतले से बोरवेल में फँसी हुई थी —Pgs. 42
4. हमारा लक्ष्य था—बिना क्षति पहुँचाए सफलता हासिल करना —Pgs. 51
चुनौतियों में
5. विमानों से छलाँग लगाकर मुझे महसूस होता है कि मैं जिंदा हूँ! —Pgs. 65
6. मेरी गायब उँगली पर्वतारोहण की ट्रॉफी है —Pgs. 76
7. हम उस अभियान पर मारे जा सकते थे, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ —Pgs. 85
8. एवरेस्ट पर शारीरिक ताकत से ज्यादा मानसिक मजबूती मायने रखती है —Pgs. 93
अतुलनीय
9. मेरे शरीर का हर हिस्सा टूट चुका है, सिवाय मेरी मुसकान के —Pgs. 109
10. मैं 8,500 फीट की ऊँचाई से जमीन पर गिरा और पैराशूट नहीं खुला —Pgs. 119
11. जब उनको आसमान से छोड़ा गया, उस दौरान वे जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे —Pgs. 127
12. मैंने अपने हाथों से खुकरी से अपना पैर काटकर अलग किया —Pgs. 133
13. जब आपके पास खोने को कुछ नहीं होता, तब वहाँ डर भी नहीं होता —Pgs. 144
फौजी बनने के लिए प्रशिक्षण
14. 25 वर्ष की उम्र में आप 100 लोगों का नेतृत्व करते हैं, जो आपके एक आदेश पर जान देने को तैयार रहते हैं —Pgs. 155
15. मैं ट्रूप गेम्स भी फुटबॉल की तरह खेलती हूँ; मैं राइफल से शूट कर सकती हूँ और मुझे खाली हाथ लड़ना आता है— हर महिला अधिकारी ऐसा करती है —Pgs. 165
16. मैं साँप के बिल के पास खड़ा था और कोबरा को अपनी तरफ आता देख रहा था —Pgs. 171
लोकप्रिय मिथक टूटे
17. महिलाओं के लिए नहीं है यह पेशा! —Pgs. 185
18. ये बिना दिमाग वाला काम है! —Pgs. 195
19. यह आपके विदेश जाने के सपने को धराशायी कर देता है —Pgs. 202
20. मैं वर्ष 40 की उम्र में सेना में शामिल हुआ —Pgs. 208
21. विकलांग सैनिकों के लिए कोई पदोन्नति नहीं होती —Pgs. 213
संस्थाएँ —Pgs. 218
मैं सेना में कैसे शामिल हो सकता हूँ? —Pgs. 224
आभारोक्तियाँ —Pgs. 229
रचना बिष्ट रावत ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया और लंबे समय तक ‘स्टेट्समैन’, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ तथा ‘डेक्कन हेराल्ड’ के साथ कार्य किया। सन् 2005 में वे हैरी ब्रिटेन फेलो बनीं और सन् 2006 में उन्होंने कॉमनवेल्थ प्रेस क्वार्टरली रॉयल रॉयस अवॉर्ड जीता। वर्ष 2008-09 में उनकी प्रथम कहानी ‘मुन्नी मौसी’ कॉमनवेल्थ लघुकथा प्रतियोगिता में खूब सराही गई। उनकी प्रथम पुस्तक ‘द बे्रव : परमवीर चक्र स्टोरीज’ प्रकाशित होकर बहुचर्चित हुई। वे अपने पति लेफ्टनेंट कर्नल मनोज रावत व तेरह वर्षीय पुत्र सारांश के साथ भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण करती रही हैं। उनके विषय में अधिक जानकारी www.rachnabisht.com पर प्राप्त की जा सकती है।