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"ग़ज़ल के रंग जब दिल की जमीन पर बिखरते हैं तो अहसास सुगंधित होने लगता है। मन की मुँड़ेरों पर नए-नए दीये रोशन होने लगते हैं। फूल अपनी-अपनी शाख़ पर झूमने लगते हैं। यह कमाल है ग़ज़ल का। ग़ज़ल ने यह कमाल यूँ ही हासिल नहीं कर लिया है। ग़ज़ल ने दिलों तक पहुँचने के लिए तवील सफ़र तय किया है। ग़ज़ल के आगोश में जो भी आया, ग़ज़ल का हो गया।
डॉ. माला कपूर 'गौहर', जो एक शिक्षाविद् तो हैं ही, ईश्वर ने उन्हें और भी बहुत-सी खूबियों से नवाजा है। उनकी संगीत साधना जब सामने आती है तो मन आनंदित हो उठता है। संगीत से उनका यही अनुराग उन्हें ग़ज़ल के क़रीब ले आया। नशिस्तों में ग़ज़लें सुनते-सुनते ग़ज़ल ने उन्हें कब अपना बना लिया, शायद इसका गुमान मालाजी को भी नहीं हुआ। यह और बात है कि कविताओं से उनका पुराना रिश्ता रहा है। ग़ज़ल का जादू उन पर ऐसा हुआ कि ग़ज़लें कहना शुरू किया तो एक-से-एक नायाब ग़ज़ल दिल के वरक़ से काग़ज़ की ज़मीन पर उतरती चली गई। उनकी शायरी विभिन्न रंगों से भरपूर है। जीवन की जद्दोजहद उसमें नज़र आती है तो रूमानियत की ज़मीन पर भी वह रक्स करती दिखाई देती है।"