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रामवृक्ष बेनीपुरी ने कई नाटकों, एकांकियों और रेडियो-रूपकों की रचना की है। ‘तथागत’ एक ऐतिहासिक नाटक है। इसमें बुद्ध के प्रख्यात ऐतिहासिक चरित्र की मामर्क अभिव्यक्ति हुई है। भाषण की सजीवता, शैली के अनूठेपन, कल्पना की मसृणता और संवादों के लाघव में बुद्ध का विस्तृत जीवनवृत्त खटकता नहीं, अपितु पाठक/दर्शक एक सम्मोहन की अवस्था में एक-एक दृश्य पढ़ता/देता चला जाता है।
‘तथागत’ की कथावस्तु पाँच अंकों में विन्यस्त है और वे पाँचों अंक विभिन्न शीर्षकों—अंतिम शृंगार, सुजाता की खीर, बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, विरोध और विजय तथा महापरिनिर्वाण में अभिव्यक्त हुए हैं। फिर भी कथावस्तु की सुगठता, प्रवाहमयता खंडित नहीं होती। यह एक विशिष्ट नाट्य-कृति है।
"जन्म : 23 दिसंबर, 1899 को बेनीपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) में।
शिक्षा : साहित्य सम्मेलन से विशारद।
स्वाधीनता सेनानी के रूप में लगभग नौ साल जेल में रहे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए।
संपादित पत्र : तरुण भारत, किसान मित्र, गोलमाल, बालक, युवक, कैदी, लोक-संग्रह, कर्मवीर, योगी, जनता, तूफान, हिमालय, जनवाणी, चुन्नू-मुन्नू तथा नई धारा।
कृतियाँ : चिता के फूल (कहानी संग्रह); लाल तारा, माटी की मूरतें, गेहूँ और गुलाब (शब्दचित्र-संग्रह); पतितों के देश में, कैदी की पत्नी (उपन्यास); सतरंगा इंद्रधनुष (ललित-निबंध); गांधीनामा (स्मृतिचित्र); नया आदमी (कविताएँ); अंबपाली, सीता की माँ, संघमित्रा, अमर ज्योति, तथागत, सिंहल विजय, शकुंतला, रामराज्य, नेत्रदान, गाँव का देवता, नया समाज और विजेता (नाटक); हवा पर, नई नारी, वंदे वाणी विनायकौ, अत्र-तत्र (निबंध); मुझे याद है, जंजीरें और दीवारें, कुछ मैं कुछ वे (आत्मकथात्मक संस्मरण); पैरों में पंख बाँधकर, उड़ते चलो उड़ते चलो (यात्रा साहित्य); शिवाजी, विद्यापति, लंगट सिंह, गुरु गोविंद सिंह, रोजा लग्जेम्बर्ग, जय प्रकाश, कार्ल मार्क्स (जीवनी); लाल चीन, लाल रूस, रूसी क्रांति (राजनीति); इसके अलावा बाल साहित्य की दर्जनों पुस्तकें तथा विद्यापति पदावली और बिहारी सतसई की टीका।
स्मृतिशेष : 7 सितंबर, 1968।