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पृथ्वी पर आदम एवं हौवा का जन्म हुआ। फिर मर्द और औरत का अस्तित्व धरती पर आया। मर्द और औरत दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी भी एक के न होने से प्रकृति का संतुलन गड़बड़ा जाएगा और गड़बड़ा भी रहा है। विवाह केवल हिंदू धर्म में ही नहीं अपितु हर धर्म में अनिवार्य माना जाता है।
‘तलाक, तलाक, तलाक’ के खौफनाक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए पति ने जब उनके निकाह को अचानक खत्म करने का फैसला किया तो शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 1980 के दशक में बॉलीवुड की एक फिल्म ने पूरे देश में तीन तलाक पर एक बहस छेड़ दी थी, तब भी जमात-ए-इसलामी हिंद के चार पन्नों वाले ‘दैनिक दवात’ ने तीन तलाक को कुरान के मुताबिक बताया था।
बरसों बाद लोगों का ध्यान तीन तलाक की इस लड़ाई की तरफ गया है। प्रसिद्ध सामाजिक टिप्पणीकार और फ्रंटलाइन के एसोशिएट एडिटर ज़ियाउस्सलाम ने ‘तीन तलाक’ में विस्तार से बताया है कि इसलाम में तलाक की प्रक्रिया क्या है। तीन महीने की अवधि में दिए जानेवाले तलाक से लेकर खुला और तलाक-ए-तफवीज तक इस किताब ने एक मुसलिम दंपती के पास तलाक के मौजूद दूसरे तरीकों की चर्चा की है, जिनकी कोई बात ही नहीं करता है, क्योंकि सारी बहस तीन तलाक तक ही सीमित रहती है।
इसके अवैधानिक घोषित किए जाने पर मुसलिम महिलाओं के जीवन को नई श्वास मिलेगी और उन्हें आसमान में उड़ने के लिए पंख मिलेंगे। तीन तलाक के सभी पहलुओं पर एक संपूर्ण पुस्तक।
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अनुक्रम
भूमिका —Pgs. 7
पुस्तक परिचय —Pgs. 11
1. एक-दूसरे के लिए वस्त्र की तरह —Pgs. 23
2. जैसा कि कुरान कहती है —Pgs. 31
3. जब तक तलाक हमें जुदा न कर दे —Pgs. 38
4. सुन्नी विचारधारा के विभिन्न स्कूल —Pgs. 45
5. हलाला : एक अनिष्टकारी व्याख्या —Pgs. 53
6. बहुविवाह पर कुरान —Pgs. 59
7. एक महिला का तलाक देने का अधिकार —Pgs. 66
8. उसके लिए अन्य रास्ते —Pgs. 71
9. शियाओं के तलाक के तरीके —Pgs. 75
10. मुगलकाल के दौरान तलाक —Pgs. 80
11. उच्चतम न्यायालय का सायरा बानो बनाम भारतीय संघ एवं अन्य केस में फैसला —Pgs. 84
12. बदलाव के पीछे महिलाएँ —Pgs. 94
13. फैसले, जिन्होंने रास्ता तैयार किया —Pgs. 119
14. ए.आई.एम.पी.एल.बी. के कार्य-बिंदु —Pgs. 126
15. मुस्लिम देशों में तुरंत तलाक की मनाही —Pgs. 131
16. काजी अदालतों में तुरंत तीन तलाक एवं खुला —Pgs. 143
निष्कर्ष : आगे का रास्ता —Pgs. 149
परिशिष्ट : मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम-2019 —Pgs. 159
स्रोत —Pgs. 164
ज़ियाउस्सलाम ‘फ्रंटलाइन में सह-संपादक हैं। वे एक नामचीन साहित्यिक एवं सामाजिक टीकाकार हैं। वेदों और कुरान के अध्ययन के जरिए वे समानता के पुल-निर्माण में शामिल हैं।
वे भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव (आई.एफ.एफ.आई.) की जूरी के सदस्य रहे और वर्ष 2008 में सिनेमा पर सर्वोत्तम लेखन के लिए जूरी का भी हिस्सा रहे। वे आई.एफ.एफ.आई. (विश्व सिनेमा) की प्रिव्यू कमेटी में भी शामिल रहे। उनकी किताब ‘दिल्ली 4 शोज : टॉकीज ऑफ येस्टरईयर’ जो दिल्ली के सिनेमाघरों पर आधारित अध्ययन है, को वर्ष 2016 में
जारी किया गया। उन्होंने वर्ष 2012 में ‘हाउसफुल : द गोल्डन एज ऑफ हिंदी सिनेमा’ नामक पुस्तक संपादित की।
बहुस्तरीय दृष्टिकोण अपनाते हुए वे साहित्यिक एवं सिनेमाई घटनाओं पर नियमित रूप से लिखते हैं। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग और ब्रिटिश काउंसिल एवं अन्य द्वारा प्रकाशित संकलनों में भी योगदान किया है।
उनकी एक और पुस्तक ‘ऑफ सैफ्रन फ्लैग्स एंड स्कल कैप्स’ का हिंदी अनुवाद ‘भगवा बनाम तिरंगा’ हाल ही में प्रकाशित हुई। एकऔर पुस्तक‘वूमैन इन मस्जिद’ शीघ्र प्रकाश्य।