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प्रसिद्ध कथाकार हिमांशु जोशी की कहानियों में आम आदमी का सतत संघर्ष ही नहीं, आज के समाज का सजीव प्रतिबिंब भी है। इसलिए उनकी कहानियाँ मात्र कहानियाँ ही नहीं, अपने समय का एक प्रामाणिक दस्तावेज भी बन गई हैं।
अनेक धरातलों पर लिखी गई इन विविध रंगी, बहुआयामी कहानियों में गहन मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ एक दृष्टि भी है, अपना एक अलग दृष्टिकोण भी। इतने सरल, सहज ढंग से इन्हें चित्रित किया गया है कि ये कहानियाँ चलचित्र के चलते-फिरते, बोलते दृश्य सी प्रतीत होती हैं।
बनावट और बुनावट का अपना एक अलग महत्त्व होता है, किंतु बनावट और बिना बुनावट के सहज शैली में लिखी इन रचनाओं का अपना विशिष्ट सौंदर्य है। शायद यही सौंदर्यरहित सहज सौंदर्य इन रचनाओं को एक नया आयाम देने में सफल रहा है। कहानी कहानी होते हुए भी कभी कहानी नहीं, सच लगे-इससे बड़ी खूबी और क्या हो सकती है-यही इन रचनाओं की उपलब्धि है।
हिमांशु जोशी ने कहानी लेखन में प्रयोग भी कम नहीं किए। अनजाने प्रदेशों में कथा-तत्त्व को खोज निकालना उनका स्वभाव है। हिमांशु जोशी का यह कहानीसंग्रह अद्भुत वैविध्य लिये है। इतनी विविधता हिंदी कहानी-संग्रहों में कम देखने को मिलती है।
हिमांशु जोशी जन्मः4 मई, 1935, उत्तराखंड।
कृतित्व : यशस्वी कथाकारउपन्यासकार। लगभग साठ वर्षों तक लेखन में सक्रिय रहे। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं-'अंततः तथा अन्य कहानियाँ', 'मनुष्य चिह्न तथा अन्य कहानियाँ', 'जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियाँ', 'संपूर्ण कहानियाँ, ‘रथचक्र', ‘तपस्या तथा अन्य कहानियाँ', ‘सागर तट के शहर' 'हिमांशु जोशी की लोकप्रिय कहानियाँ' आदि।
प्रमुख उपन्यास हैं-'अरण्य', ‘महासागर', 'छाया मत छूना मन’, ‘कगार की आग', 'समय साक्षी है', 'तुम्हारे लिए', ‘सुराज', 'संपूर्ण उपन्यास'। वैचारिक संस्मरणों में उत्तर-पर्व' एवं 'आठवाँ सर्ग' तथा कहानी-संग्रह ‘नील नदी का वृक्ष' उल्लेखनीय हैं। ‘यात्राएँ', 'नॉर्वे : सूरज चमके आधी रात' यात्रा-वृत्तांत भी विशेष चर्चा में रहे। उसी तरह काला-पानी की अनकही कहानी 'यातना शिविर में भी। समस्त भारतीय भाषाओं के अलावा अनेक रचनाएँ अंग्रेजी, नॉर्वेजियन, इटालियन, चेक, जापानी, चीनी, बर्मी, नेपाली आदि भाषाओं में भी रूपांतरित होकर सराही गईं। आकाशवाणी, दूरदर्शन, रंगमंच तथा फिल्म के माध्यम से भी कुछ कृतियाँ सफलतापूर्वक प्रसारित एवं प्रदर्शित हुईं। बाल साहित्य की अनेक पठनीय कृतियाँ प्रकाशित हुईं। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अनेक सम्मानों से भी अलंकृत।
स्मृतिशेष: 23 नवंबर, 2018, दिल्ली।