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फिर भी, मैं अंदर से कहीं डरा हुआ था। सहमा-सहमा-सा, बुरी तरह हिला हुआ। कभी तो उसमें रम-रमकर सबकुछ अगला-पिछला भूलकर उसकी गहरी जड़ोंवाली यारी में खो जाता; परंतु फिर उसे सहमी-शंकित नजरों से देखने लगता। सुखन कहता, “भई, ऐसे मत देखो। तुम्हारे ऐसे देखने से मुझे भय होता है। बचूँगा नहीं।” ऐसे वाक्यों से मैं और दहल जाता तो कहता, “सब तो बता चुका। बताओ, अब और क्या प्रमाण चाहिए?” “साइंस लॉजिक”, मेरे मुँह से फुसफुसाहट फूटी। पता नहीं, शब्द हवा में ही तैरकर रह गए या उस तक पहुँचे भी। दूसरे-तीसरे दिन मेरी हिम्मत जवाब दे गई। मैं सुखन से मिलने नहीं पहुँचा। दीगर दोस्तों ने भी चेताया—“क्यों किसी बड़ी मुसीबत को गले लगाने पर आमादा हो।”
—इसी संग्रह से प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में सामाजिक-राजनीतिक एवं मशीनी युग के हर क्षेत्र में एक-दूसरे से बाजी मार ले जाने की अंधी दौड़। एक ओर नैतिक मूल्यों के पतन, समाज में व्याप्त तकलीफें, बेचैनी और उदासी है तो दूसरी ओर शाश्वत नैतिक मूल्यों की रक्षा को समर्पित विभूतियों की दृश्यावलियाँ सामने आती हैं। अत्यंत मार्मिक एवं हृदय-स्पर्शी कहानियाँ।
जन्म : 26 फरवरी, 1935 को कुंदियाँ, जिला मियाँवाली (अब पाकिस्तान) में।
कृतित्व : छह कहानी-संग्रह, एक व्यंग्य कथा-संग्रह, तीन उपन्यास, दो बाल उपन्यास, एक नाटक ‘घुमावदार रास्ते’, एक हास्य संस्मरण, दस बाल कथा-नाटक संग्रह, कई संपादित ग्रंथ, बाल साहित्य की कई पुस्तकें तथा दो हजार से अधिक स्फुट रचनाएँ प्रकाशित व प्रसारित। विभाजन के उपन्यास ‘टूटी हुई जमीन’, ‘वर्जनाओं को लाँघते हुए’, ‘कई मोड़ों के बाद’ विशेष रूप से चर्चित रहे।
सम्मान : राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर; सोवियत नारी, मॉस्को; चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट एवं परिवार कल्याण मंत्रालय सहित विभिन्न संस्थानों एवं संगठनों द्वारा सम्मानित।
संप्रति : रेलवे की नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद से स्वतंत्र लेखन।