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आज इस आकस्मिक घटना से हम तीनों के हृदय में ईश्वर के प्रति आस्था बढ़ी। हमें लगा मानो कोई दिव्य शक्ति हमारी ओर हाथ बढ़ाने वाली है। हमें शीघ्र ही विपत्ति से छुटकारा मिलने वाला है। विपत्तियाँ स्थायी नहीं होतीं। जब व्यक्ति सब ओर से निराश हो जाता है, तभी प्रभु उसकी सहायता करता है।
कृष्णा का घर में सम्मान था। भाई- भतीजे आदि सभी उसे सम्मान से रखते थे। उसकी माँ तथा भाई राधामोहन उसे ‘कृष्णा’ कहकर पुकारते थे; पर कांता जब छोटी थी, वह उसे ‘कृष्णा दीदी’ न कहकर ‘निन्ना दीदी’ कहा करती थी। और तभी से सब लोग उसे ‘निन्ना’ कहने लगे। कृष्णा पढ़ी-लिखी तो थी ही। उसका स्वभाव बड़ा मिलनसार और भाषा, बोली मधुर थी। उसके होंठों पर हर समय मुसकान फैली रहती थी।
सन् 1940 में द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। उस समय भी ईसाई समाज हिंदू ब्राह्मण वर्ग से पूर्ण बहिष्कृत और उपेक्षित था। गरीब ब्राह्मण सत्ताधारी प्रभु वर्ग के अंग्रेज ईसाइयों को तुच्छ समझते थे। स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहना ही उनका दंभ था। इसी समय में अंग्रेज ईसाई महिला सॉफी और शर्मा के प्रेम संबंध उस युग की एक सामाजिक क्रांतिकारी घटना थी। वास्तव में मानव प्रेम धर्म, जाति, संप्रदाय और संकीर्णता पर नहीं टिका है।
लहना सिंह इलाके का हिस्ट्रीशीटर भी था; पर भगवान् ने उसे गला इतना मीठा दिया था कि उसकी आवाज सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। स्वयं थाने के लोग भी उसे बिठाकर फिल्मी गीत सुना करते थे। नामी चोर होते हुए भी लहना सिंह का अंदाज, चाल-ढाल किसी मस्ताने हीरो से कम न थी।
—इसी संग्रह से
सन् 1953 में पहली कहानी ‘प्यार और जलन’ छपी। पहला उपन्यास ‘खिलते फूल’ पाठकों द्वारा बहुत सराहा गया। साठ-सत्तर के दशक में ‘राजा सूरजमल’, (ऐतिहासिक उपन्यास), ‘हजार हाथ’ (पुरस्कृत), वैज्ञानिक कहानियों का संग्रह ‘उड़न तश्तरियों का रोमांच’, ‘खँडहर की मैना’ प्रकाशित। लगभग 50 वर्ष के लेखन में साहित्यिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक विषयों पर 55 से अधिक पुस्तकें तथा विज्ञान एवं खाद्य कृषि समस्याओं पर एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। ‘रेगिस्तान के भगीरथ’ और ‘जीवों का संसार’ पुस्तकें भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से पुरस्कृत। रेडियो नाटक, एकांकी एवं संपूर्ण नाटक, कविताएँ और लेख-वार्त्ताओं के प्रसारण-प्रकाशन की संख्या हजार से ऊपर। इन्हें राष्ट्रीय कृषि पत्रकार का पाँच हजार रुपए का पुरस्कार भी मिला है । रोचक व सरल शैली तथा बोलती हुई जीवंत भाषा इनकी अपनी विशेषता है । विज्ञान-जगत को इनसे बहुत आशाएँ हैं।
संप्रति : भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में संपादक