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सच कितने भी पहरों में कैद हो, अँधेरे की कितनी भी परतें उसे दबाएँ, पर उसका विकिरण, उसका तेज सबको चीरकर बाहर आ ही जाता है, सबसे ऊपर, सबसे अलग एक सच वह है, जो अक्षरों के साथ कागज पर उतरता है। एक सच वह भी है, जो अक्षरों से दूर चुपके से खड़ा होता है। यही चुप-चुप खड़ा सच हमें अहसास कराता है कि धूप चाहे बदली में ढक गई हो, सूरज चाहे हाँफने लगा हो, धरती बंजर से हरियाली में तब्दील हो गई हो, नीला जल अपनी शिनाख्त खो बैठा हो, हवाओं ने अपनी शीतलता कम कर दी हो, पर मैं वहीं हूँ—अपनी जगह विश्वास के न हिलनेवाले पाँवों पर खड़ा।
प्रस्तुत पुस्तक में कल का सच, आज भी उसी विकृति और विद्रूपता के साथ मौजूद है। आज भी याददाश्त न खोनेवाले दिमागों में दर्ज है कि कैसे एक पवित्र जल में स्नान की चाह रखनेवाली महारानी को देखने उमड़ी भीड़ पचपन लोगों की जल-समाधि ले बैठी थी, कैसे मृत घोषित कर दिया गया एक संगीतकार आज भी अपनी धुनें बिखेर रहा है, कि गुंडे आज भी अखबारों और छोटे परदे पर रोज-रोज जगह पा रहे हैं, कि श्वसुर को मात देनेवाला एक दामाद वक्त से ही मात खा बैठा, कि हत्यारों की कहानी गढ़ते-गढ़ते बीहड़ों के प्रतिनायक जीवन के बीहड़ में आज कितने लाचार और पस्त हैं।
ये रपटें,जो समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं—यह बताने में पूरी तरह सक्षम हैं कि देश, काल और मौसम के बदलने से न तो जीवन मरता है, न सच मिटता है। मनोरंजक, ज्ञानपरक एवं कौतूहलपूर्ण रचनाओं का संग्रह है— त्रिकोण के तीनों कोण।
जन्म : 20 दिसंबर, 1957 को ग्वालियर (म.प्र.) में।
कृतित्व : ‘सरेआम’, ‘गुम होता आदमी’ (कहानी संग्रह), ‘त्रिकोण के तीनों कोण’ (पत्रकारिता) पुस्तकें प्रकाशित। ग्वालियर के दैनिक ‘स्वदेश’ से पत्रकारिता की शुरुआत। ‘मुक्ता’, ‘धर्मयुग’ से संबद्ध रहे। ‘कुबेर टाइंस’ (मुंबई संस्करण) के कार्यकारी संपादक, दैनिक ‘हिंदुस्तान’ (भागलपुर संस्करण) के समन्वय संपादक, ‘एकता चक्र’ व ‘पूर्णविराम’ (नवभारत समूह) के संपादक रहे।
‘हिंदी कहानी कोश’, ‘आठवें दशक के कहानीकार’, ‘अस्पताल की कहानियाँ’, ‘त्रासद प्रेम कथाएँ’ संग्रहों में कहानियाँ शामिल। पुणे विश्वविद्यालय से ‘हरीश पाठक कृत गुम होता आदमी : एक अनुशीलन’ पर एम.फिल.।
सम्मान-पुरस्कार : ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित स्तंभ ‘सुर्खियों के पीछे’ के लिए उ.प्र. सरकार का गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार। एक सौ दस कड़ियों में प्रसारित धारावाहिक ‘जन-गण-मन’ और साठ कड़ियों में प्रसारित ‘पोल टाइंस’ का लेखन।
संप्रति : ‘राष्ट्रीय सहारा’ (पटना संस्करण) के स्थानीय संपादक।