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‘‘कब लौटेंगे तुम्हारे पतिदेव?’’
‘‘तीन दिन बाद।’’
‘‘तो तुम्हारा मन कैसे लगेगा इन तीन दिन तक?’’
उसने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप चाय बनाकर प्याला उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो, ठंडी हो जाएगी।’’
उसने प्याला ले लिया और पीने लगा। उसकी दृष्टि अस्मिता के पैरों पर पड़ी तो उसे फिर से वह कालीघाट की घटना याद आ गई और वह अंतर्मुख हो उठा।
उस चुभनेवाले मौन को तोड़ते हुए अस्मिता ने ही कहा था,
‘‘करते क्या हो?’’
‘‘भ्रमण?’’
‘‘और कितने दिन तक इस तरह भटकते रहोगे?’’ उसके स्वर में कुछ झुँझलाहट सी थी। कुछ सहानुभूति भी।
‘‘जब तक सत्य की खोज न कर लूँ।’’
‘‘तुम पागल हो देवाशीष। जीवन का सत्य जीवन से अलग और कुछ नहीं है।’’
—इसी पुस्तक से
सुप्रसिद्ध कथाकार र.श. केलकर पौराणिक, सामाजिक एवं जीवन-जगत् से जुड़े यक्ष-प्रश्नों को आधार बनाकर उपन्यास लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं। ‘त्रिपथा’ एक ऐसा ही उपन्यास है, जिसमें पौराणिक आख्यान के माध्यम से नारी और मानवीय संवेदना को रेखांकित किया गया है।
एक महाराष्ट्रीय परिवार में 1923 में जनमे डॉ. केलकर हिंदीभाषी और हिंदी प्रदेश निवासी हैं। उनके लेखन में सहज रूप से चिंतन की व्यंजना के साथ-साथ सहानुभूति और भावुकता का संयोग मिलता है। प्रशासक होने के कारण उनकी रचनाओं में एक तटस्थता का भाव भी है।
नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. करने के बाद डॉ. केलकर ने पंजाब विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. किया। उनका बहुचर्चित शोध-प्रबंध ‘मराठी और हिंदी का कृष्ण-काव्य’ प्रकाशित हुआ। ‘कुत्ते की दुम’ (व्यंग्य) तथा ‘तुम्हारे साथ’ (कविता-संग्रह) के अतिरिक्त उनके पाँच उपन्यास—‘त्रिमूर्ति’, ‘त्रिपुर सुंदरी’, ‘त्रिनयना’, ‘त्रिरूपा’ और ‘त्रिपथा’ प्रकाशित। ‘त्रिमूर्ति’ मराठी तथा बांग्ला में भी अनूदित।
अंग्रेजी में उनके दो ग्रंथ ‘द लाइफ ऑफ ए योगी’ और ‘ए बंच ऑफ रिमिनिसेन्सेज’ प्रकाशित। मराठी से हिंदी में अनेक अनुवाद, जिनमें स्व. मामा वरेरकर के नाटकों का अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।
देश की अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं से संबद्ध, साहित्य अकादेमी तथा भारतीय ज्ञानपीठ के सचिव रहे। अध्यात्म, शास्त्र और योग विद्या में गहन रुचि। उनका जीवन प्रायः यायावर रहा है। अपने कार्यकाल में वे नेपाल, ग्रीस, बल्गेरिया, चैक गणराज्य, यूगोस्लाविया, बेल्जियम, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, सूरीनाम, वेस्टइंडीज, बारबड़ोस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका, जापान, कोरिया आदि अनेक देशों की यात्रा। ‘इंटरनेशनल कल्चरल सोसाइटी ऑफ कोरिया’ के मनोनीत आजीवन सदस्य। संप्रति रामकुंज आश्रम में रहकर अपने गुरु महाराज श्री स्वामी राम की शिक्षाओं का अनुशीलन करने में रत।