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उड़ने की चाह में पंख तो मिले
पर आकाश नहीं मिला
एक टुकड़ा आसमान का
मेरे आँगन से दिखता
पिता ने कहा
तू जितनी चाहे उड़
यही तेरा आकाश है
मैंने देखा उनकी तरफ
मेरा मौन मुखर हो बोला
मुझे टुकड़ों में नहीं
पूरा आसमान चाहिए
उड़ने को सारा संसार चाहिए ।
- इसी पुस्तक मै
जन्म : 6 दिसंबर ।
शिक्षा : एम .ए., बी. एड., पी - एच. डी. ।
कृतित्व : ' मैंने चाँद - तारे तो नहीं माँगे थे ', ( कथा सग्रह), ' अज्ञेय का उपन्यास शिल्प ' एवं पत्र -पत्रिकाओं में स्त्री -समस्याओं पर लेख, कहानी, निबंध, कविता आदि प्रकाशित ।
बिहार के विभिन्न कॉलेजों में व्याख्याता एवं प्रभारी -प्राचार्य रहीं । सामाजिक कार्यों का अनुभव, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की सदस्य, कार्डिनेटर एवं उपाध्यक्ष रहीं । संगोष्ठी, सेमिनार तथा वर्कशॉप आदि विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय सहभागिता एवं प्रतिनिधित्व ।
सम्मान-पुरस्कार : गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा रचनाकर्म के लिए ' महादेवी वर्मा सम्मान ' से सम्मानित ।
संप्रति : व्याख्याता, हिंदी विभाग, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना ।